क्या बाइबल परमेश्वर की त्रित्व (ट्रिनिटी) के बारे में बात करती है?
आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। और पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी; और गहरे जल के ऊपर अन्धियारा था: तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता था। तब परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो: तो उजियाला हो गया। (उत्पत्ति १:१-३)
किसी ने ऐसा कहा कि, "यदि आप वास्तव में बाइबल की पहली ही वचन पर विश्वास करते हैं, तो आपको इसके बाकी वचनों पर विश्वास करने में अधिक समस्या नहीं होगी"
उत्पत्ति १:१ परमेश्वर को सृष्टिकर्ता के रूप में प्रकट करता है; यहं इब्रानी शब्द परमेश्वर 'एलोहीम' है जो कि उत्पत्ति की पूरी किताब में इस्तेमाल किया गया परमेश्वर का प्रारंभिक नाम है।
उत्पत्ति १:२ में हम पढ़ते हैं कि परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता था। यहं आत्मा शब्द रूवाच है और पुराने नियम में इसका अनुवाद "हवा, सांस और आत्मा" के रूप में किया जा सकता है।
नूह के जलप्रलय में हम पढ़ते हैं कि परमेश्वर ने पृथ्वी के ऊपर से गुजरने और जल को सुखाने के लिए "हवा" कहां भेजी। हवा यहं एक ही शब्द है, रूवाच, लेकिन ध्यान दें कि यह एक प्राकृतिक हवा है और पवित्र आत्मा की हवा नहीं है, जैसे कि पिन्तेकुस्त के दिन ऊपरी कमरे में आई थी (प्रेरितों के काम २:१-२)।
वचन १ में पिता परमेश्वर के प्रकट होता है और वचन २ में आत्मा मण्डलाता है, वचन ३ में शब्द (मसीह) उजियाला है; इस प्रकार त्रित्व (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) उत्पत्ति के पहले तीन वचनों में प्रकट होता है।
शब्द "त्रित्व" पवित्र शास्त्र में मौजूद है लेकिन परमेश्वर की त्रिएक बाइबिल के पहले तीन वचनों में पाई जाती है।
इसका क्या अर्थ है कि पृथ्वी बिना आकार और सुनसान थी (उत्पत्ति १:२)?
गैप थ्योरी (अंतराल सिद्धांत) क्या है?
2 पृथ्वी बेडौल और सुनसान थी। धरती पर कुछ भी नहीं था। समुद्र पर अंधेरा छाया था और परमेश्वर की आत्मा जल के ऊपर मण्डराती थी (उत्पत्ति 1:2)
इब्रानी तोहू का अनुवाद आम तौर पर "बिना रूप" या "निराकार" के रूप में किया जाता है और बोहू का अनुवाद "शून्य" या "खाली" के रूप में किया जाता है।
कुछ बाइबल विद्वानों ने सुझाव दिया है कि शायद परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की रचना की (जैसा कि उत्पत्ति १:१ में उल्लेख किया गया है), और फिर वचन १ और वचन २ के बीच कुछ ऐसा हुआ जिसके कारण पृथ्वी पूरी तरह से सृजित और सुंदर से "बिना आकार और सुनसान" में चली गई।
उत्पत्ति १:१ और पद के बीच समय का यह अंतराल लाखों से अरबों वर्ष लंबा हो सकता है। कुछ बाइबल विद्वानों ने बताया है कि यह वह समय हो सकता है जब शैतान को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया गया था और स्वर्ग में एक युद्ध था जो आज के परमाणु युद्धों से अधिक शक्तिशाली हो सकता था। यह बताता है कि पृथ्वी निराकार और शून्य क्यों थी। यह सिद्धांत बाइबिल के समय की व्याख्या करने का भी प्रयास करता है जहां आप "प्रागैतिहासिक जानवरों" जैसे डायनासोर आदि को हो सकते हैं।
५ क्योंकि वे तो जान बूझ कर इस (सच) भूल गए, कि परमेश्वर के वचन के द्वारा से आकाश प्राचीन काल से वर्तमान है और पृथ्वी भी जल में से बनी और जल में स्थिर है। ६ जिसके द्वारा उस समय का जगत जल से भर गया और नाश हो गया।
७ पर वर्तमान काल के आकाश और पृथ्वी उसी वचन के द्वारा इसलिये रखे हैं, कि जलाए जाएं; और वह भक्तिहीन मनुष्यों के न्याय और नाश होने के दिन तक ऐसे ही रखे रहेंगे। (२ पतरस ३:५-७)
बाइबल के विद्वानों ने प्रेरित पतरस के ओर एक संकेत की ओर इशारा किया है: "जिसके माध्यम से वह दुनिया [मौजूद में]" थी। क्या कोई पूर्व-आदम की जाती हो सकती थी?
इस दर्शन को अक्सर धर्मशास्त्री, थॉमस चाल्मर्स द्वारा अंतराल सिद्धांत कहा जाता है। स्वर्गीय चक मिस्लर जैसे हाल के बाइबल विद्वानों ने भी इस दर्शन को अपनाया। इस सिद्धांत (किसी भी अन्य सिद्धांत की तरह) को चुनौती दी गई है। यह मेरी इच्छा है कि मैं आपको केवल उन सभी संभावित राय से परिचित कराऊं जो वहां मौजूद हैं।
सृष्टि के पहले दिन उजियाला कैसे हो सकता था यदि चौथे दिन तक सूर्य नहीं बनाया गया था?
तीसरा वचन, उत्पत्ति १:३ काफी दिलचस्प है, जैसा कि परमेश्वर ने कहा, "'उजियाला हो: तो उजियाला हो गया।" यह उजियाला सूर्य, चंद्रमा, या तारों का ब्रह्मांडीय उजियाला नहीं था, क्योंकि इन स्वर्गीय उजियालों का निर्माण सृष्टि के चौथे दिन हुआ था (व. १४-१९)।
यह प्रकाश कौन था या क्या था?
प्रेरित यूहन्ना हमें उनके सुसमाचार की शुरूआत में एक सुराग देता है, "वचन" (मसीह का जिक्र) सृष्टि में मौजूद है, और यूहन्ना ने कहा: "और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया" (यूहन्ना १:५)।
यह साबित करने के लिए कि सृष्टि का पहला दिन मसीह की ओर से अलौकिक उजियाला और महिमा था, हम नए यरूशलेम के बारे में प्रकाशितवाक्य २१:२३ में पढ़ते हैं: “उस नगर को किसी सूर्य या चन्द्रमा की कोई आवश्यकता नहीं है कि वे उसे प्रकाश दें, क्योंकि वह तो परमेश्वर के तेज से आलोकित था। और मेमना ही उस नगर का दीपक है।
और प्रकाशितवाक्य २२:५ में लिखा है, “वहाँ कभी रात नहीं होगी और न ही उन्हें सूर्य के अथवा दीपक के प्रकाश की कोई आवश्यकता रहेगी। क्योंकि उन पर प्रभु परमेश्वर अपना प्रकाश डालेगा और वे सदा सदा शासन करेंगे।
यदि परमेश्वर का मेमना नए यरूशलेम की ज्योति है, तो वह पहले दिन सृष्टि का आरंभिक उजियाला था!
तब परमेश्वर ने कहा, “उजियाला हो”[a] और उजियाला हो गया। (उत्पत्ति 1:3)
ध्यान दें कि परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता रहा था। पानी था, अंधकार था, और परमेश्वर का आत्मा था। लेकिन वास्तव में कुछ भी नहीं हुआ जब तक कि वचन नहीं बोले गए। परमेश्वर ने कहा, "उजियाला हो" और उजियाला हक़ीक़त में आया। यह तभी हुआ जब परमेश्वर ने कहा। परमेश्वर का वचन उनकी रचनात्मक सामर्थ था फिर भी बहुत से लोग वचनों की सामर्थ को कम समझते हैं।
परमेश्वर का वचन कितना सत्य है:परमेश्वर का वचन कितना सत्य है:“तेरा वचन समझना यह एक ऐसे प्रकाश सा है जो उन्हें जीवन की खरी राह दिखाया करता है।.” (भजन संहिता 119:130)
आधुनिक विज्ञान हमें बताता है कि पहले केवल एक ही भूभाग था, क्या बाइबल इसका समर्थन करती है?
और तब परमेश्वर ने कहा, “पृथ्वी का जल एक जगह इकट्ठा हो जिससे सूखी भूमि दिखाई दे” और ऐसा ही हुआ। 10 परमेश्वर ने सूखी भूमि का नाम “पृथ्वी” रखा और जो पानी इकट्ठा हुआ था, उसे “समुद्र” का नाम दिया। परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है। (उत्पत्ति 1:9-10)
आधुनिक विज्ञान हमें बताता है कि हजारों साल पहले, पृथ्वी में सात महाद्वीप नहीं थे, बल्कि पैंजिया नामक एक विशाल महामहाद्वीप था, जो पंथलासा नामक एक महासागर से घेरा हुआ था।
उत्पत्ति १:१-१० में बाइबल इस सच की पुष्टि करती हैउत्पत्ति १:१-१० में बाइबल इस सच की पुष्टि करती है
आरंभ में, पृथ्वी पर भूमि का एक टुकड़ा और 'समुद्र' नामक जल का एक संग्रह था।
स्वर्ग में ज्योतियों का निर्माण करने के लिए परमेश्वर का उद्देश्य क्या था?
14 तब परमेश्वर ने कहा, “आकाश में ज्योति होने दो। यह ज्योति दिन को रात से अलग करेंगी। यह ज्योति एक विशेष चिन्ह के रूप में प्रयोग की जाएंगी जो यह बताएंगी कि विशेष सभाएं कब शुरू की जाएं और यह दिनों तथा वर्षों के समय को निश्चित करेंगी। 15 पृथ्वी पर प्रकाश देने के लिए आकाश में ज्योति ठहरें” और ऐसा ही हुआ। (उत्पत्ति 1:14-15)
आकाश के मण्डल में उजियाला का उद्देश्य:
१. दिन को रात से अलग करने के लिए
२.चिन्हों और नियत समयों के लिए
३. दिनों, और वर्षों के लिए
४. पृथ्वी पर उजियाला देने के लिए
मनुष्य की मूल (असली) आहार योजना क्या थी जब परमेश्वर ने उसे बनाया था?
परमेश्वर ने कहा, “देखो, मैंने तुम लोगों को सभी बीज वाले पेड़ पौधे और सारे फलदार पेड़ दिए हैं। ये अन्न तथा फल तुम्हारा भोजन होगा। (उत्पत्ति 1:29)
दिलचस्प बात यह है कि मनुष्य के लिए परमेश्वर का मूल आहार सब्जियाँ और फल थे। पतन के बाद ही मनुष्य मांसाहारी बन गया।
Chapters
- अध्याय १
- अध्याय २
- अध्याय ३
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- अध्याय ५
- अध्याय ६
- अध्याय ७
- अध्याय ८
- अध्याय ९
- अध्याय १०
- अध्याय ११
- अध्याय १२
- उत्पत्ति १३
- उत्पत्ति १४
- उत्पत्ति १५
- उत्पत्ति १६
- अध्याय १७
- अध्याय १८
- अध्याय १९
- अध्याय २०
- अध्याय २१
- अध्याय - २२
- अध्याय - २३
- अध्याय २४
- अध्याय २५
- अध्याय - २६
- अध्याय २७
- अध्याय २८
- अध्याय २९
- अध्याय ३०
- अध्याय ३१
- अध्याय ३२
- अध्याय ३३
- अध्याय ३४
- अध्याय ३५
- अध्याय ३६
- अध्याय ३७
- अध्याय ३८
- अध्याय ३९
- अध्याय ४०
- अध्याय ४१
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- अध्याय ४६
- अध्याय ४७
- अध्याय ४८
- अध्याय ४९
- अध्याय ५०