कुछ लोग आए और उन्होने यहोशापात से कहा, “तुम्हारे विरुद्ध एदोम से एक विशाल सेना आ रही है। वे मृत सागर की दूसरी ओर से आ रहे हैं। वे हसासोन्तामार में पहले से ही हैं।” (हसासोन्तामार को एनगदी भी कहा जाता है) (2 इतिहास 20:2)
पवित्र शास्त्र कहता है, "यहोशापात को बता दिया था"। यह संसार की वाणी है, प्रभु की नहीं। यह एक खराब रिपोर्ट हो सकती है।
तब यहोशपात डर गया और यहोवा की खोज में लग गया, और पूरे यहूदा में उपवास का प्रचार करवाया। (२ इतिहास २०:३)
संसार की वाणी हमेशा भय लाएगी। परन्तु यहोशापात यहोवा की खोज में लगा। यदि भय आपको किसी चीज की ओर ले जाता है, तो तब प्रभु की खोज करें। उपवास के साथ प्रभु को खोजो। उपवास के साथ संयुक्त प्रार्थना में बड़ी आत्मिक क्षमता होती है।
सो यहूदी यहोवा से सहायता मांगने के लिये इकट्ठे हुए, वरन वे यहूदा के सब नगरों से यहोवा से भेंट करने को आए। (२ इतिहास २०:४)
यहोशापात ने न केवल एक व्यक्ति के रूप में बल्कि एक समष्टिगत के रूप में उपवास किया। आप और आपका परिवार एक समष्टिगत के रूप में उपवास करना हैं। यह समष्टिगत उपवास का उदाहरण है।
तुम्हारे पाँच व्यक्ति सौ व्यक्तियों को पीछा कर के भगाएंगे और तुम्हारे सौ व्यक्ति हजार व्यक्तियों का पीछा करेंगे। (लैव्यव्यवस्था 26:8)
५ - १००, इसका अर्थ है १ व्यक्ति २० मनुष्य को खदेड़ेगा
१०० - १००००, इसका अर्थ है १ व्यक्ति १०० मनुष्य को खदेड़ेगा
जब लोग एक साथ आते हैं तो शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
हमारे परमेश्वर, उन लोगों को दण्ड दे! हम लोग उस विशाल सेना के विरुद्ध कोई शक्ति नहीं रखते जो हमारे विरुद्ध आ रही है! हम नहीं जानते कि क्या करें! यही कारण है कि हम तुझसे सहायता की आशा करते हैं।” (2 इतिहास 20:12)
यह वचन उस प्रार्थना का हिस्सा है जिसे राजा यहोशापात ने परमेश्वर को अर्पित किया था जब एक बड़ी भीड़ ने उन्हें घेर लिया था।
प्रार्थना वास्तविकता से इनकार नहीं करती है। प्रार्थना हमारी आँखों को वास्तविकता से बंद नहीं करती है या हमें इससे दूर नहीं लेजाती है। वास्तव में, सच्ची प्रार्थना में वास्तविकता को बदलने की सामर्थ होती है। यह एक कारण है कि हर मसीही को खुद को ईमानदारी से प्रार्थना करने के लिए समर्पित करना चाहिए।
राजा यहोशापात ने स्वीकार किया कि उस बड़ी भीड़ पर जो उनके विरुद्ध इकट्ठी हुई थी, उन पर उनका कोई अधिकार नहीं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि, "उन्हें यकीन नहीं था कि परीस्थिति के बारे में क्या करना है।"
जीवन में कई बार ऐसे समय आते हैं जब जीवन के दबाव हम पर हावी हो जाते हैं और ऐसे समय में हमें समझ नहीं आता कि आगे क्या करना है। एक चीज जो आप कर सकते हैं, वह है, अपने हृदय को परमेश्वर के लिए खोल देना। प्रार्थना की सबसे सरल परिभाषा है "प्रभु के लिए अपना हृदय खोलना।" उन्हें सब कुछ बताएं।
यदि तुम में से कोई विपत्ति में पड़ा है तो उसे प्रार्थना करनी चाहिए (याकूब 5:13)
२२ जिस समय वे गाकर स्तुति करने लगे, उसी समय यहोवा ने अम्मोनियों, मोआबियों और सेईर के पहाड़ी देश के लोगों पर जो यहूदा के विरुद्ध आ रहे थे, घातकों को बैठा दिया और वे मारे गए।
२३ क्योंकि अम्मोनियों और मोआबियों ने सेईर के पहाड़ी देश के निवासियों डराने और सत्यानाश करने के लिये उन पर चढ़ाई की, और जब वे सेईर के पहाड़ी देश के निवासियों का अन्त कर चुके, तब उन सभों ने एक दूसरे के नाश करने में हाथ लगाया। (२ इतिहास २०:२२-२३)
भजन संहिता ४०:१४ में, दाऊद ने प्रार्थना की: "जो मेरे प्राण की खोज में हैं, वे सब लज्जित हों; और उनके मुंह काले हों और वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएं जो मेरी हानि से प्रसन्न होते हैं।" आपस में भ्रम (असमंजस) ! अपने लोगों के दुश्मनों से लड़ने के लिए भ्रम परमेश्वर के हाथ में एक हथियार है।
नबी यिर्मयाह ने भी प्रार्थना की। उसने कहा, "परन्तु यहोवा मेरे साथ है, वह भयंकर वीर के समान है; इस कारण मेरे सताने वाले प्रबल न होंगे, वे ठोकर खाकर गिरेंगे। वे बुद्धि से काम नहीं करते, इसलिये उन्हें बहुत लज्जित होना पड़ेगा। उनका अपमान सदैव बना रहेगा और कभी भूला न जाएगा" (यिर्मयाह २०:११)।अनन्तकाली असमंजस! यह गंभीर है। जब यहोवा आपके लिए लड़ेगा, तब आपका शत्रु, और आप नहीं, असमंजस में पड़ जाएगा।
जकर्याह 12:4 कहता है,किन्तु उस समय, मैं घोड़ों को भयभीत कर दुँगा और घुड़सवार घबरा जाएंगे। मैं शत्रु के सभी घोड़ो को अन्धा कर दुँगा, किन्तु मेरी आंखें खुली होंगी और मैं यहूदा के परिवार की रक्षा करता.क्या आपने उस भ्रम शब्द को फिर से देखा? यह अपने शत्रुओं से लड़ने के लिए परमेश्वर के हथियारों में से एक है।
इस समय में, यहोवा आपके लिए लड़ेगा (युध्द करेगा), और आप अपनी शांति बनाए रखोगे। वह आपके हठीले शत्रुओं को भ्रम में डाल देगा, और वे नहीं जानेंगे कि क्या करना है। आप यीशु के नाम में सम्पूर्ण विजय का आनंद उठायेंगे। स्तुति और आराधना शत्रु डेरा में भ्रम पैदा करेगी।
चौथे दिन यहोशापात और उसकी सेना बराका की घाटी में मिले। उन्होंने उस स्थान पर यहोवा की स्तुति की। यही कारण है कि उस स्थान का नाम आज तक “बराका की घाटी” है। (2 इतिहास 20:26)
ध्यान दें कि बराका एक घाटी थी, और फिर भी यह एक आशीष थी। चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूं, तौभी हानि से न डरूंगा। परमेश्वर पहाड़ और घाटियों के परमेश्वर हैं।
पवित्र शास्त्र कहता है, "यहोशापात को बता दिया था"। यह संसार की वाणी है, प्रभु की नहीं। यह एक खराब रिपोर्ट हो सकती है।
तब यहोशपात डर गया और यहोवा की खोज में लग गया, और पूरे यहूदा में उपवास का प्रचार करवाया। (२ इतिहास २०:३)
संसार की वाणी हमेशा भय लाएगी। परन्तु यहोशापात यहोवा की खोज में लगा। यदि भय आपको किसी चीज की ओर ले जाता है, तो तब प्रभु की खोज करें। उपवास के साथ प्रभु को खोजो। उपवास के साथ संयुक्त प्रार्थना में बड़ी आत्मिक क्षमता होती है।
सो यहूदी यहोवा से सहायता मांगने के लिये इकट्ठे हुए, वरन वे यहूदा के सब नगरों से यहोवा से भेंट करने को आए। (२ इतिहास २०:४)
यहोशापात ने न केवल एक व्यक्ति के रूप में बल्कि एक समष्टिगत के रूप में उपवास किया। आप और आपका परिवार एक समष्टिगत के रूप में उपवास करना हैं। यह समष्टिगत उपवास का उदाहरण है।
तुम्हारे पाँच व्यक्ति सौ व्यक्तियों को पीछा कर के भगाएंगे और तुम्हारे सौ व्यक्ति हजार व्यक्तियों का पीछा करेंगे। (लैव्यव्यवस्था 26:8)
५ - १००, इसका अर्थ है १ व्यक्ति २० मनुष्य को खदेड़ेगा
१०० - १००००, इसका अर्थ है १ व्यक्ति १०० मनुष्य को खदेड़ेगा
जब लोग एक साथ आते हैं तो शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
हमारे परमेश्वर, उन लोगों को दण्ड दे! हम लोग उस विशाल सेना के विरुद्ध कोई शक्ति नहीं रखते जो हमारे विरुद्ध आ रही है! हम नहीं जानते कि क्या करें! यही कारण है कि हम तुझसे सहायता की आशा करते हैं।” (2 इतिहास 20:12)
यह वचन उस प्रार्थना का हिस्सा है जिसे राजा यहोशापात ने परमेश्वर को अर्पित किया था जब एक बड़ी भीड़ ने उन्हें घेर लिया था।
प्रार्थना वास्तविकता से इनकार नहीं करती है। प्रार्थना हमारी आँखों को वास्तविकता से बंद नहीं करती है या हमें इससे दूर नहीं लेजाती है। वास्तव में, सच्ची प्रार्थना में वास्तविकता को बदलने की सामर्थ होती है। यह एक कारण है कि हर मसीही को खुद को ईमानदारी से प्रार्थना करने के लिए समर्पित करना चाहिए।
राजा यहोशापात ने स्वीकार किया कि उस बड़ी भीड़ पर जो उनके विरुद्ध इकट्ठी हुई थी, उन पर उनका कोई अधिकार नहीं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि, "उन्हें यकीन नहीं था कि परीस्थिति के बारे में क्या करना है।"
जीवन में कई बार ऐसे समय आते हैं जब जीवन के दबाव हम पर हावी हो जाते हैं और ऐसे समय में हमें समझ नहीं आता कि आगे क्या करना है। एक चीज जो आप कर सकते हैं, वह है, अपने हृदय को परमेश्वर के लिए खोल देना। प्रार्थना की सबसे सरल परिभाषा है "प्रभु के लिए अपना हृदय खोलना।" उन्हें सब कुछ बताएं।
यदि तुम में से कोई विपत्ति में पड़ा है तो उसे प्रार्थना करनी चाहिए (याकूब 5:13)
२२ जिस समय वे गाकर स्तुति करने लगे, उसी समय यहोवा ने अम्मोनियों, मोआबियों और सेईर के पहाड़ी देश के लोगों पर जो यहूदा के विरुद्ध आ रहे थे, घातकों को बैठा दिया और वे मारे गए।
२३ क्योंकि अम्मोनियों और मोआबियों ने सेईर के पहाड़ी देश के निवासियों डराने और सत्यानाश करने के लिये उन पर चढ़ाई की, और जब वे सेईर के पहाड़ी देश के निवासियों का अन्त कर चुके, तब उन सभों ने एक दूसरे के नाश करने में हाथ लगाया। (२ इतिहास २०:२२-२३)
भजन संहिता ४०:१४ में, दाऊद ने प्रार्थना की: "जो मेरे प्राण की खोज में हैं, वे सब लज्जित हों; और उनके मुंह काले हों और वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएं जो मेरी हानि से प्रसन्न होते हैं।" आपस में भ्रम (असमंजस) ! अपने लोगों के दुश्मनों से लड़ने के लिए भ्रम परमेश्वर के हाथ में एक हथियार है।
नबी यिर्मयाह ने भी प्रार्थना की। उसने कहा, "परन्तु यहोवा मेरे साथ है, वह भयंकर वीर के समान है; इस कारण मेरे सताने वाले प्रबल न होंगे, वे ठोकर खाकर गिरेंगे। वे बुद्धि से काम नहीं करते, इसलिये उन्हें बहुत लज्जित होना पड़ेगा। उनका अपमान सदैव बना रहेगा और कभी भूला न जाएगा" (यिर्मयाह २०:११)।अनन्तकाली असमंजस! यह गंभीर है। जब यहोवा आपके लिए लड़ेगा, तब आपका शत्रु, और आप नहीं, असमंजस में पड़ जाएगा।
जकर्याह 12:4 कहता है,किन्तु उस समय, मैं घोड़ों को भयभीत कर दुँगा और घुड़सवार घबरा जाएंगे। मैं शत्रु के सभी घोड़ो को अन्धा कर दुँगा, किन्तु मेरी आंखें खुली होंगी और मैं यहूदा के परिवार की रक्षा करता.क्या आपने उस भ्रम शब्द को फिर से देखा? यह अपने शत्रुओं से लड़ने के लिए परमेश्वर के हथियारों में से एक है।
इस समय में, यहोवा आपके लिए लड़ेगा (युध्द करेगा), और आप अपनी शांति बनाए रखोगे। वह आपके हठीले शत्रुओं को भ्रम में डाल देगा, और वे नहीं जानेंगे कि क्या करना है। आप यीशु के नाम में सम्पूर्ण विजय का आनंद उठायेंगे। स्तुति और आराधना शत्रु डेरा में भ्रम पैदा करेगी।
चौथे दिन यहोशापात और उसकी सेना बराका की घाटी में मिले। उन्होंने उस स्थान पर यहोवा की स्तुति की। यही कारण है कि उस स्थान का नाम आज तक “बराका की घाटी” है। (2 इतिहास 20:26)
ध्यान दें कि बराका एक घाटी थी, और फिर भी यह एक आशीष थी। चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूं, तौभी हानि से न डरूंगा। परमेश्वर पहाड़ और घाटियों के परमेश्वर हैं।
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