और उस ने उन से कहा, तुम में से कौन है कि उसका एक मित्र हो, और वह आधी रात को उसके पास आकर उस से कहे, कि हे मित्र; मुझे तीन रोटियां दे। (लूका ११:५)
दोस्त रहना (रखना)
यह जीवित रिश्ते की बात करता है।
अब से मैं तुम्हें दास न कहूंगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैं ने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैं ने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं। (यूहन्ना १५:१५)
आधी रात में
१. आधी रात परिवर्तन का समय है, एक दिन से दूसरे दिन तक। जैसा कि आप आधी रात को प्रार्थना करते हैं तो परमेश्वर आपके जीवन में एक परिवर्तन ला सकता है।
२. आधी रात महान आत्मिक कार्यकलाप का समय है, अच्छाई और बुराई दोनों। आधी रात में पुरुषों की होनहार (तक़दीर) मैं आकार और रूकावट होती है। यदि आप आधी रात में अपने भाग्य को होनहार नहीं दे रहे हैं, तो कोई व्यक्ति आधी रात मैं आपके जीवन को रूकावट कर सकता है।
तीन रोटियां
यह प्रार्थना में विशिष्ट मांग करने की बात करता है।
मैं तुम से कहता हूं, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, तौभी उसके लज्ज़ा छोड़कर मांगने के कारण उसे जितनी आवश्यकता हो उतनी उठकर देगा। (लूका ११:८)
लूका १८:१-८ में पाए गए अन्यायी न्यायाधीश और दृढ़ विधवा के दृष्टांत में, गरीब विधवा न्यायाधीश से न्याय लेने के लिए भीख मांगती रही। उसने सिर्फ एक बार नहीं पूछा और कहा, "मेरा न्याय चुकाकर मुझे मुद्दई से बचा।" वह लगातार याचिकाओं के साथ पूछती रही।
निरंतर प्रार्थना क्या है?
१. यह प्रार्थना है जब तक आपके पास उत्तर या मांग नहीं है जो आप परमेश्वर से मांग रहे हैं।
२. यह जब तक प्रार्थना करना जारी है तब तक आप अपनी आत्मा में रिहाई महसूस नहीं करते हैं कि वह आपकी ओर से मध्यवर्ती कर रहा है।
३. जब तक आपकी प्रार्थना का उत्तर नहीं आता है यह उनके पास वापस आना है।
प्रार्थना के तीन क्षेत्र (आयाम) क्या हैं?
और मैं तुम से कहता हूं; कि मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ों तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो ढूंढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा। (लूका ११:९-१०)
प्रार्थना के तीन आयाम
१. मांगना
२. ढूंढ़ना (खोजना)
३. खटखटाना
फिर उस ने एक गूंगी दुष्टात्मा को निकाला: जब दुष्टात्मा निकल गई, तो गूंगा बोलने लगा; और लोगों ने अचम्भा किया। (लूका ११:१४)
बीमारी और रोग शैतानी शक्तियों के कारण हो सकती है।
जब वह ये बातें कह ही रहा था तो भीड़ में से किसी स्त्री ने ऊंचे शब्द से कहा, "धन्य वह गर्भ जिस में तू रहा; और वे स्तन, जो तू ने चूसे।" उस ने कहा, हां; "परन्तु धन्य वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं॥" (लूका ११:२७-२८)
यीशु ने स्त्री के बयान के सच्चाई पर सवाल नहीं उठाया, लेकिन उसे और भी अधिक सच्चाई की ओर इशारा किया। "परन्तु धन्य वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं।"
पुराने नियम में हम पढ़ते हैं कि शमूएल ने अपने लोगों को बताया: "क्या यहोवा होमबलियों, और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन मानना तो बलि चढ़ाने और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है।" (१ शमूएल १५:२२)
यीशु परमेश्वर के वचन का पालन करने के महत्व पर ध्यान केंद्रित कर रहा था। एक अन्य अवसर पर यीशु ने लगभग वही मुद्दा बताया: "अब यीशु की माता और भाई उसके पास आए, पर भीड़ के कारण उस से भेंट न कर सके। और उस से कहा गया, कि तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हुए तुझ से मिलना चाहते हैं। उस ने उसके उत्तर में उन से कहा कि मेरी माता और मेरे भाई ये ही हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं॥" (लूका ८:१९-२१)
वचन को सुनना और इसे अपने जीवन में लागू करना हमें यीशु के साथ एक करीबी रिश्ते में लाता है।
यूनुस का चिन्ह क्या है?
जब बड़ी भीड़ इकट्ठी होती जाती थी तो वह कहने लगा; कि इस युग के लोग बुरे हैं; वे चिन्ह ढूंढ़ते हैं; पर यूनुस के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा। (लूका ११:२९)
वाक्यांश "यूनुस के चिन्ह" का उपयोग यीशु ने अपने भविष्य के सूली पर चढ़ाए जाने, दफनाने और पुनरुत्थान के लिए एक प्रतीकात्मक रूपक के रूप में किया था। यीशु ने इस अभिव्यक्ति के साथ उत्तर दिया जब फरीसियों ने चमत्कारी जांच के लिए कहा कि वह वास्तव में मसीहा था।
दक्खिन की रानी न्याय के दिन इस समय के मनुष्यों के साथ उठकर, उन्हें दोषी ठहराएगी, क्योंकि वह सुलैमान का ज्ञान सुनने को पृथ्वी की छोर से आई, और देखो यहां वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है। (लूका ११:३१)
यह सुलैमान की बुद्धि को सुनना था। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के वचन को सुनने के लिए।
इसलिए, हमारी प्रेरणा प्रभु के घर आने के लिए परमेश्वर के रेमा वचन को सुनना चाहिए।
३३ कोई मनुष्य दीया बार के तलघरे में, या पैमाने के नीचे नहीं रखता, परन्तु दीवट पर रखता है कि भीतर आने वाले उजियाला पाएं। ३४ तेरे शरीर का दीया तेरी आंख है, इसलिये जब तेरी आंख निर्मल है, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला है; परन्तु जब वह बुरी है, तो तेरा शरीर भी अन्धेरा है। ३५ इसलिये चौकस रहना, कि जो उजियाला तुझ में है वह अन्धेरा न हो जाए। ३६ इसलिये यदि तेरा सारा शरीर उजियाला हो, ओर उसका कोई भाग अन्धेरा न रहे, तो सब का सब ऐसा उलियाला होगा, जैसा उस समय होता है, जब दीया अपनी चमक से तुझे उजाला देता है॥ (लूका ११:३३-३६)
ध्यान दें, प्रभु यीशु आंख की बात कर रहे थे। उन्होंने 'आंख' की बात की जो एकवचन में है। प्रभु यीशु ने आंख को एकवचन में संदर्भित किया क्योंकि वह चित्र और दर्शन और दृश्य क्षेत्र के बारे में बात कर रहे थे। वह हमारी शारीरिक आंखों की बात नहीं कर रहे थे बल्कि हमारी कल्पना (विचार या मन) की आंखों की बात कर रहे थे जो प्राण की आंखें हैं। आपकी प्राण (आत्मा) की आंखें हैं।
प्रभु यीशु ने कहा, "यदि तुम्हारी आंख अच्छी है, तो तुम्हारा सारा शरीर भी उजियाला होगा"। दूसरे शब्दों में, यदि आपकी कल्पना अच्छी है, तो आपका पूरा जीवन अच्छा और उजियाला से भरा होगा। अगर आपकी कल्पना बुरी है, तो आपका पूरा जीवन बुराई से भरा होगा।
यदि आप शाररिक दुनिया में बदलाव चाहते हैं, तो आपको दृश्य क्षेत्र, अपनी कल्पना के क्षेत्र, अपने ह्रदय की आंखों से निपटना होगा।
एक ग्रीक शब्द है जो कल्पना के बारे में बात करता है। यह डायनोआ शब्द है, जिसे कभी-कभी मन के रूप में अनुवादित किया जाता है।
शारीरिक (भौतिक) जगत में कुछ लोग कम दृष्टिवाले होते हैं जब की तो कुछ लोग लंबा दृष्टिवाले है। आत्मा क्षेत्र में लोगों को देखने में भी परेशानी होती है। और फिर भी परमेश्वर कहता है कि आप उन्हें अपने पूरे ह्रदय, आत्मा और मन से प्रेम करें।. तो जब आप अपने ह्रदय से परमेश्वर से प्रेम करते हैं, तो उसे कल्पना क्षेत्र को बचाव करना होगा।
युद्ध आत्मा के आयाम (क्षेत्र) में है। यदि आप आत्मिक आयाम में युद्ध जीतते हैं, तो आप भौतिक आयाम में भी युद्ध जीतते हैं। यदि आप आत्मिक आयाम में युद्ध हार जाते हैं, तो आप भौतिक आयाम में भी हार जाते हैं।
“ओ फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है क्योंकि तुम अपने पुदीने और सुदाब बूटी और हर किसी जड़ी बूटी का दसवाँ हिस्सा तो अर्पित करते हो किन्तु परमेश्वर के लिये प्रेम और न्याय की उपेक्षा करते हो। किन्तु इन बातों को तुम्हें उन बातों की उपेक्षा किये बिना करना चाहिये था।. (लूका 11:42)
दशमांश यहोवा ने अलग नहीं रखा।
दोस्त रहना (रखना)
यह जीवित रिश्ते की बात करता है।
अब से मैं तुम्हें दास न कहूंगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैं ने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैं ने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं। (यूहन्ना १५:१५)
आधी रात में
१. आधी रात परिवर्तन का समय है, एक दिन से दूसरे दिन तक। जैसा कि आप आधी रात को प्रार्थना करते हैं तो परमेश्वर आपके जीवन में एक परिवर्तन ला सकता है।
२. आधी रात महान आत्मिक कार्यकलाप का समय है, अच्छाई और बुराई दोनों। आधी रात में पुरुषों की होनहार (तक़दीर) मैं आकार और रूकावट होती है। यदि आप आधी रात में अपने भाग्य को होनहार नहीं दे रहे हैं, तो कोई व्यक्ति आधी रात मैं आपके जीवन को रूकावट कर सकता है।
तीन रोटियां
यह प्रार्थना में विशिष्ट मांग करने की बात करता है।
मैं तुम से कहता हूं, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, तौभी उसके लज्ज़ा छोड़कर मांगने के कारण उसे जितनी आवश्यकता हो उतनी उठकर देगा। (लूका ११:८)
लूका १८:१-८ में पाए गए अन्यायी न्यायाधीश और दृढ़ विधवा के दृष्टांत में, गरीब विधवा न्यायाधीश से न्याय लेने के लिए भीख मांगती रही। उसने सिर्फ एक बार नहीं पूछा और कहा, "मेरा न्याय चुकाकर मुझे मुद्दई से बचा।" वह लगातार याचिकाओं के साथ पूछती रही।
निरंतर प्रार्थना क्या है?
१. यह प्रार्थना है जब तक आपके पास उत्तर या मांग नहीं है जो आप परमेश्वर से मांग रहे हैं।
२. यह जब तक प्रार्थना करना जारी है तब तक आप अपनी आत्मा में रिहाई महसूस नहीं करते हैं कि वह आपकी ओर से मध्यवर्ती कर रहा है।
३. जब तक आपकी प्रार्थना का उत्तर नहीं आता है यह उनके पास वापस आना है।
प्रार्थना के तीन क्षेत्र (आयाम) क्या हैं?
और मैं तुम से कहता हूं; कि मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ों तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो ढूंढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा। (लूका ११:९-१०)
प्रार्थना के तीन आयाम
१. मांगना
२. ढूंढ़ना (खोजना)
३. खटखटाना
फिर उस ने एक गूंगी दुष्टात्मा को निकाला: जब दुष्टात्मा निकल गई, तो गूंगा बोलने लगा; और लोगों ने अचम्भा किया। (लूका ११:१४)
बीमारी और रोग शैतानी शक्तियों के कारण हो सकती है।
जब वह ये बातें कह ही रहा था तो भीड़ में से किसी स्त्री ने ऊंचे शब्द से कहा, "धन्य वह गर्भ जिस में तू रहा; और वे स्तन, जो तू ने चूसे।" उस ने कहा, हां; "परन्तु धन्य वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं॥" (लूका ११:२७-२८)
यीशु ने स्त्री के बयान के सच्चाई पर सवाल नहीं उठाया, लेकिन उसे और भी अधिक सच्चाई की ओर इशारा किया। "परन्तु धन्य वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं।"
पुराने नियम में हम पढ़ते हैं कि शमूएल ने अपने लोगों को बताया: "क्या यहोवा होमबलियों, और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन मानना तो बलि चढ़ाने और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है।" (१ शमूएल १५:२२)
यीशु परमेश्वर के वचन का पालन करने के महत्व पर ध्यान केंद्रित कर रहा था। एक अन्य अवसर पर यीशु ने लगभग वही मुद्दा बताया: "अब यीशु की माता और भाई उसके पास आए, पर भीड़ के कारण उस से भेंट न कर सके। और उस से कहा गया, कि तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हुए तुझ से मिलना चाहते हैं। उस ने उसके उत्तर में उन से कहा कि मेरी माता और मेरे भाई ये ही हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं॥" (लूका ८:१९-२१)
वचन को सुनना और इसे अपने जीवन में लागू करना हमें यीशु के साथ एक करीबी रिश्ते में लाता है।
यूनुस का चिन्ह क्या है?
जब बड़ी भीड़ इकट्ठी होती जाती थी तो वह कहने लगा; कि इस युग के लोग बुरे हैं; वे चिन्ह ढूंढ़ते हैं; पर यूनुस के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा। (लूका ११:२९)
वाक्यांश "यूनुस के चिन्ह" का उपयोग यीशु ने अपने भविष्य के सूली पर चढ़ाए जाने, दफनाने और पुनरुत्थान के लिए एक प्रतीकात्मक रूपक के रूप में किया था। यीशु ने इस अभिव्यक्ति के साथ उत्तर दिया जब फरीसियों ने चमत्कारी जांच के लिए कहा कि वह वास्तव में मसीहा था।
दक्खिन की रानी न्याय के दिन इस समय के मनुष्यों के साथ उठकर, उन्हें दोषी ठहराएगी, क्योंकि वह सुलैमान का ज्ञान सुनने को पृथ्वी की छोर से आई, और देखो यहां वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है। (लूका ११:३१)
यह सुलैमान की बुद्धि को सुनना था। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के वचन को सुनने के लिए।
इसलिए, हमारी प्रेरणा प्रभु के घर आने के लिए परमेश्वर के रेमा वचन को सुनना चाहिए।
३३ कोई मनुष्य दीया बार के तलघरे में, या पैमाने के नीचे नहीं रखता, परन्तु दीवट पर रखता है कि भीतर आने वाले उजियाला पाएं। ३४ तेरे शरीर का दीया तेरी आंख है, इसलिये जब तेरी आंख निर्मल है, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला है; परन्तु जब वह बुरी है, तो तेरा शरीर भी अन्धेरा है। ३५ इसलिये चौकस रहना, कि जो उजियाला तुझ में है वह अन्धेरा न हो जाए। ३६ इसलिये यदि तेरा सारा शरीर उजियाला हो, ओर उसका कोई भाग अन्धेरा न रहे, तो सब का सब ऐसा उलियाला होगा, जैसा उस समय होता है, जब दीया अपनी चमक से तुझे उजाला देता है॥ (लूका ११:३३-३६)
ध्यान दें, प्रभु यीशु आंख की बात कर रहे थे। उन्होंने 'आंख' की बात की जो एकवचन में है। प्रभु यीशु ने आंख को एकवचन में संदर्भित किया क्योंकि वह चित्र और दर्शन और दृश्य क्षेत्र के बारे में बात कर रहे थे। वह हमारी शारीरिक आंखों की बात नहीं कर रहे थे बल्कि हमारी कल्पना (विचार या मन) की आंखों की बात कर रहे थे जो प्राण की आंखें हैं। आपकी प्राण (आत्मा) की आंखें हैं।
प्रभु यीशु ने कहा, "यदि तुम्हारी आंख अच्छी है, तो तुम्हारा सारा शरीर भी उजियाला होगा"। दूसरे शब्दों में, यदि आपकी कल्पना अच्छी है, तो आपका पूरा जीवन अच्छा और उजियाला से भरा होगा। अगर आपकी कल्पना बुरी है, तो आपका पूरा जीवन बुराई से भरा होगा।
यदि आप शाररिक दुनिया में बदलाव चाहते हैं, तो आपको दृश्य क्षेत्र, अपनी कल्पना के क्षेत्र, अपने ह्रदय की आंखों से निपटना होगा।
एक ग्रीक शब्द है जो कल्पना के बारे में बात करता है। यह डायनोआ शब्द है, जिसे कभी-कभी मन के रूप में अनुवादित किया जाता है।
शारीरिक (भौतिक) जगत में कुछ लोग कम दृष्टिवाले होते हैं जब की तो कुछ लोग लंबा दृष्टिवाले है। आत्मा क्षेत्र में लोगों को देखने में भी परेशानी होती है। और फिर भी परमेश्वर कहता है कि आप उन्हें अपने पूरे ह्रदय, आत्मा और मन से प्रेम करें।. तो जब आप अपने ह्रदय से परमेश्वर से प्रेम करते हैं, तो उसे कल्पना क्षेत्र को बचाव करना होगा।
युद्ध आत्मा के आयाम (क्षेत्र) में है। यदि आप आत्मिक आयाम में युद्ध जीतते हैं, तो आप भौतिक आयाम में भी युद्ध जीतते हैं। यदि आप आत्मिक आयाम में युद्ध हार जाते हैं, तो आप भौतिक आयाम में भी हार जाते हैं।
“ओ फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है क्योंकि तुम अपने पुदीने और सुदाब बूटी और हर किसी जड़ी बूटी का दसवाँ हिस्सा तो अर्पित करते हो किन्तु परमेश्वर के लिये प्रेम और न्याय की उपेक्षा करते हो। किन्तु इन बातों को तुम्हें उन बातों की उपेक्षा किये बिना करना चाहिये था।. (लूका 11:42)
दशमांश यहोवा ने अलग नहीं रखा।
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