जो विश्वास में निर्बल है, उसे अपनी संगति में ले लो; परन्तु उसी शंकाओं पर विवाद करने के लिये नहीं। क्योंकि एक को विश्वास है, कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्वास में निर्बल है, वह साग पात ही खाता है।और खानेवाला न-खाने वाले को तुच्छ न जाने, और न-खानेवाला खाने वाले पर दोष न लगाए; क्योंकि परमेश्वर ने उसे ग्रहण किया है। (रोमियो १४:१-३)
इस अध्याय में, प्रेरित पौलुस ने व्यवस्था के दो और मुद्दे को सामने लाया जो यहूदी मसीहीयों के लिए असली ठोकर थे। पहला मांस खाने का मुद्दा था जिसे व्यवस्था ने अशुद्ध घोषित किया था, और दूसरा सब्त और पर्व के दिनों जैसे विशेष दिनों को देखने का मुद्दा था।
यहूदी मसीही कह रहे थे कि अन्यजातियों के मसीहीयों को ये व्यवस्था का पालन करने होंगे। अन्यजातियों को पुराने यहूदी रिवाजों के प्रति कोई दायित्व नहीं महसूस हुआ।
तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है? उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है, वरन वह स्थिर ही कर दिया जाएगा; क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है। (रोमियो १४:४)
हम सभी सेवक हैं, न्यायाधीश नहीं। हमें प्रभु को न्यायाधीश बनने देना चाहिए। हमें सिर्फ खुद को न्याय करना चाहिए, यही ठान लो कि किसी को ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे। (रोमियो १४:१३)
क्योंकि परमेश्वर का राज्य खाना पीना नहीं; परन्तु धर्म और मिलाप और वह आनन्द है। (रोमियो १४:१७)
रोमियो की पुस्तक में यह एकमात्र स्थान है जहाँ पौलुस "राज्य" शब्द का प्रयोग करता है। परमेश्वर का राज्य बाहर से कुछ नहीं है जो बहता है - "परमेश्वर का राज्य खाने और पीने का नहीं है,"
परमेश्वर का राज्य आपके भीतर कुछ है जो बाहर बहता है - "धार्मिकता और शांति और पवित्र आत्मा में आनंद।"
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