परमेश्वर हमेशा सही होते हैं (रोमियो २:२)
मेरे जीवन में कई बार ऐसा हुआ है जब मैंने परमेश्वर से उन चीजों के बारे में मांग की है जो चीजें हुई थीं। लेकिन तब मुझे एक बात का एहसास हुआ कि, "परमेश्वर हमेशा सही होते हैं"
परमेश्वर की कृपा आपको पश्चाताप (मन फिराव) की ओर ले जाती है (रोमियो २:४)
पतरस परमेश्वर के सामने गिर गया और रोते हुए कहा, "मुझसे दूर होजा मैं एक पापी व्यक्ति हूं"। चमत्कारी रूप से मछली के पकड़ने के बाद उसने यह कहा। परमेश्वर की कृपा हमें अपने पाप से दूर करने का इरादा है।
पैशन अनुवाद यह इस तरीके से कहता है:
क्या आपको एहसास (पता) है कि उनकी असाधारण कृपा का सारा धन आपके मन को पिघलाने और आपको पश्चाताप की ओर ले जाती है? (रोमियो २:४)
क्योंकि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता। (रोमियो २:११)
परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता है। वह अपक्षपाती है। कुछ प्राचीन रब्बियों ने बताया कि परमेश्वर ने यहूदियों के प्रति पक्षपात दिखाया। उन्होंने कहा: "परमेश्वर मात्र के साथ अन्यजातियों का न्याय करेगा और यहूदियों का दूसरे के साथ।"
वे व्यवस्था की बातें अपने अपने हृदयों में लिखी हुई दिखते हैं और उन के विवेक भी गवाही देते हैं, और उन की चिन्ताएं परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती है। (रोमियो २:१५)
असल में, अन्यजातियों में "उनके हृदयों में लिखी हुई व्यवस्था का काम" था (रोमियो २:१५)। आप जहां कहीं भी जाते हैं, आप सही और गलत की आंतरिक भावना वाले लोगों को पाते हैं, और यह आंतरिक न्याय को बाइबल "विवेक" कहती है।
आप सभी संस्कृतियों के बीच पाप की भावना, न्याय का भय, और पापों का प्रायश्चित करने का प्रयास करते हैं और जो भी देवता भयभीत होते हैं उन्हें प्रसन्न करते हैं।
विश्वास के लिए एक अच्छा विवेक आवश्यक है। एक अच्छी विवेक के बिना, हमारे विश्वास रूपी जहाज़ पर डूबा जैसा है (१ तीमुथियुस १:१९)। एक अच्छा विवेक आत्मविश्वास को प्रस्तुत करता है (१ यूहन्ना ३:२१ और इब्रानियों १०:३५)। एक दुष्ट विवेक हमारी निंदा करता है (१ यूहन्ना ३:२०)।
जिस दिन परमेश्वर मेरे सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा मनुष्यों की गुप्त बातों का न्याय करेगा॥ (रोमियो २:१६)
परमेश्वर न केवल सत्य के अनुसार न्याय करता है (रोमियो २:२), और मनुष्यों के कामों के अनुसार (रोमियो २:६), लेकिन वह सुसमाचार के अनुसार "मनुष्यों की गुप्त बातों" का भी न्याय करेगा। (रोमियो २:१६)
सो क्या तू जो औरों को सिखाता है, अपने आप को नहीं सिखाता? (रोमियो २:२१)
यहां सिद्धांत यह है कि: जब आप दूसरों को सिखाते हैं तो आप खुद को भी सिखा रहे होते हैं।
क्योंकि वह यहूदी नहीं, जो प्रगट में यहूदी है और न वह खतना है जो प्रगट में है, और देह में है। (रोमियो २:२८)
शुरुआती दिनों में यहूदियों ने मन (हृदय) की खतना को नजरअंदाज कर दिया था और उनका सारा ध्यान देह पर केंद्रित था (१ शमूएल १६:७)। प्रेरित पौलुस स्पष्ट कर रहा था कि यह हृदय की स्थिति है - देह का नहीं - जो हर किसी को परमेश्वर का संतान बनाता है।
बदले हुए मन (हृदय) वाला व्यक्ति परमेश्वर से प्रशंसा चाहता है, मनुष्यों से नहीं। (रोमियो २:२९)
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