तुममें से हर एक को चाहिए कि केवल अपना ही नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे। (फिलिप्पियों 2:4)
कोई भी व्यवसाय (कार्य), कोई भी सेवकाई प्रतिरूप, जिसके मूल में ग्राहक के हित में है यह सफल होंगे
मसीह की मानसिकता हमारी प्रेरणा बननी चाहिए (फिलिप्पियों 2:5)
उसने खुद को दीन किया और कमजोर हो गया…(फिलिप्पियों 2:8)
लोग खुद को दीन (नम्र) नहीं करते इसका कारण यह है कि दीनता आपको कमजोर बनाती है।
दीनता जो परमेश्वर की आज्ञाकारिता में निर्देशित नहीं है वह झूठी दीनता है। प्रभु यीशु ने परमेश्वर की आज्ञाकारिता में खुद को दीन किया।
ओपरा के साथ एक इंटरव्यू में नेल्सन मंडेला जी ने एक बार कहा था, यदि आप दीन हैं, तो आप किसी के लिए कोई खतरा नहीं हैं। कुछ लोग इस तरह से व्यवहार करते हैं जो दूसरों पर हावी हो जाते हैं। यह एक गलत है। यदि आप अपने आस-पास के मनुष्यों का सहयोग चाहते हैं, तो आपको उन्हें यह महसूस कराना चाहिए कि वे महत्वपूर्ण हैं - और आप ऐसा वास्तविक और नम्र होकर करना हैं। आप जानते हैं कि अन्य लोगों में ऐसे गुण होते हैं जो आपसे बेहतर हो सकते हैं। उन्हें उनको व्यक्त करने दें।
किसी के पास सभी उत्तर नहीं होते हैं, और यह स्वीकार करने में कुछ भी गलत नहीं है कि सीखने के लिए हमेशा कुछ और होता है। यह अपने आप को नम्र करने और आज्ञाकारी होने का एक उदाहरण है।
अपनी गलतियों को स्वीकार करना और सुधार करना खुद को नम्र करने और आज्ञाकारी होने का एक और उदाहरण है। सिखने योग्य होना नम्रता का सबसे बड़ा उदाहरण है।
जब अगुआ खुले तौर पर स्वीकार करते हैं और अपनी कमियों और गलतियों से सीखते हैं, तो यह दूसरों के लिए भी ऐसा करने के लिए एक अच्छा वातावरण और संस्कृति बनाता है।
सच तो यह है कि हममें से कोई भी पूर्ण नहीं है। अंदर की गहराई में, उस चमकदार कवच के नीचे कुछ कमजोरियां हैं जिनसे हमें वास्तव में निपटने (सुधारने) की जरूरत है।
स्वयंसेवक और अगुवे आपकी विश्वासयोग्य सेवा परमेश्वर के लिए एक समर्पण (भेंट) है (फिलिप्पियों २:१७)
कोई भी व्यवसाय (कार्य), कोई भी सेवकाई प्रतिरूप, जिसके मूल में ग्राहक के हित में है यह सफल होंगे
मसीह की मानसिकता हमारी प्रेरणा बननी चाहिए (फिलिप्पियों 2:5)
उसने खुद को दीन किया और कमजोर हो गया…(फिलिप्पियों 2:8)
लोग खुद को दीन (नम्र) नहीं करते इसका कारण यह है कि दीनता आपको कमजोर बनाती है।
दीनता जो परमेश्वर की आज्ञाकारिता में निर्देशित नहीं है वह झूठी दीनता है। प्रभु यीशु ने परमेश्वर की आज्ञाकारिता में खुद को दीन किया।
ओपरा के साथ एक इंटरव्यू में नेल्सन मंडेला जी ने एक बार कहा था, यदि आप दीन हैं, तो आप किसी के लिए कोई खतरा नहीं हैं। कुछ लोग इस तरह से व्यवहार करते हैं जो दूसरों पर हावी हो जाते हैं। यह एक गलत है। यदि आप अपने आस-पास के मनुष्यों का सहयोग चाहते हैं, तो आपको उन्हें यह महसूस कराना चाहिए कि वे महत्वपूर्ण हैं - और आप ऐसा वास्तविक और नम्र होकर करना हैं। आप जानते हैं कि अन्य लोगों में ऐसे गुण होते हैं जो आपसे बेहतर हो सकते हैं। उन्हें उनको व्यक्त करने दें।
किसी के पास सभी उत्तर नहीं होते हैं, और यह स्वीकार करने में कुछ भी गलत नहीं है कि सीखने के लिए हमेशा कुछ और होता है। यह अपने आप को नम्र करने और आज्ञाकारी होने का एक उदाहरण है।
अपनी गलतियों को स्वीकार करना और सुधार करना खुद को नम्र करने और आज्ञाकारी होने का एक और उदाहरण है। सिखने योग्य होना नम्रता का सबसे बड़ा उदाहरण है।
जब अगुआ खुले तौर पर स्वीकार करते हैं और अपनी कमियों और गलतियों से सीखते हैं, तो यह दूसरों के लिए भी ऐसा करने के लिए एक अच्छा वातावरण और संस्कृति बनाता है।
सच तो यह है कि हममें से कोई भी पूर्ण नहीं है। अंदर की गहराई में, उस चमकदार कवच के नीचे कुछ कमजोरियां हैं जिनसे हमें वास्तव में निपटने (सुधारने) की जरूरत है।
स्वयंसेवक और अगुवे आपकी विश्वासयोग्य सेवा परमेश्वर के लिए एक समर्पण (भेंट) है (फिलिप्पियों २:१७)