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தினசரி மன்னா

मानव पतनशीलता के बीच परमेश्वर का अपरिवर्तनीय स्वभाव

Sunday, 8th of October 2023
31 21 1498
जीवन हमारे सामने अनगिनत चुनौतियां, रिश्ते और अनुभव प्रस्तुत करता है, और इनमें से उन लोगों से मुलाकात भी होती है जो प्रभु के पीछे चलने का दावा करते हैं। इनमें से कुछ व्यक्ति हमें प्रेरित करते हैं, जो हमें हमारे स्रुष्टिकर्ता के करीब ले जाते हैं। फिर भी, दुख की बात है कि अन्य लोग गुमराह, निराश  या हमारे विश्वास को धोखा भी दे सकते हैं। मायूसी के इन क्षणों में भी, एक मूलभूत सत्य को याद रखना जरुरी है: लोग असफल होते हैं, लेकिन परमेश्वर नहीं।

"क्योंकि मैं यहोवा बदलता नहीं; इसी कारण, हे याकूब की सन्तान तुम नाश नहीं हुए।" (मलाकी ३:६)

उपरोक्त वचन में, परमेश्वर अपने अपरिवर्तनीय स्वभाव की घोषणा करते हैं। यह एक आरामदायक विचार है कि दुनिया की विसंगति और अनिश्चितताओं के बीच, परमेश्वर वैसे ही बने रहता हैं। उनका चरित्र, प्रेम और वादे अटल हैं।

जो लोग उनका पीछे चलने का दावा करते हैं उनके व्यवहार के आधार पर परमेश्वर के चरित्र का न्याय करना एक बड़ी गलती है। इस पर विचार करें: यदि आप पानी की एक बूंद के आधार पर संपूर्ण महासागर का न्याय करते है, तो आपका दृष्टिकोण काफी सीमित और गलत होगा। इसी प्रकार, कुछ लोगों के कार्यों के आधार पर परमेश्वर का मूल्यांकन करना एक गलत प्रयास है।

भजन संहिता १४६:३ में लिखा है: "तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ति नहीं।" यह वचन एक शिक्षित चेतावनी है कि हमारा भरोसा मुख्य रूप से मनुष्य पर नहीं बल्कि प्रभु पर होना चाहिए। जबकि लोग, अपने पद या नाम की परवाह किए बिना, लड़खड़ा सकते हैं, परमेश्वर स्थिर रहता है।

जब प्रभु यीशु पृथ्वी पर जिए, तो उन्होंने हमें परमेश्वर का सर्वश्रेष्ठ प्रतिरूप दिखाया। फिर भी, उन्हें अपने ही एक, यहूदा इस्करियोती द्वारा विश्वासघात का सामना करना पड़ा। यीशु ने मानवता की कमज़ोरी को समझा। उन्होंने यूहन्ना २:२४-२५ में कहा, "परन्तु यीशु ने अपने आप को उन के भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब को जानता था। और उसे प्रयोजन न था, कि मनुष्य के विषय में कोई गवाही दे, क्योंकि वह आप ही जानता था, कि मनुष्य के मन में क्या है।" यहां, यीशु हमारे पतनशील स्वभाव को स्वीकार करता हैं, फिर भी वह हमसे बिना शर्त प्रेम करता हैं।

यदि यीशु, परमेश्वर के पुत्र, के पास अपने आस-पास के लोगों की भ्रांति को पहचानने की समझ होती और फिर भी वह उनके लिए प्रेम करना, शिक्षा देना और त्याग करना जारी रखता है, मानव का स्वाभाव के अप्रत्याशित पराजित के साथ बदलने के बजाय हमें परमेश्वर में अपना विश्वास बनाए रखने के लिए कितना अधिक प्रोत्साहित किया जाना चाहिए?

तो, जब कोई व्यक्ति जो परमेश्वर के पीछे चलने का दावा करता है वह हमें निराश करता है तो हमें अपनी भावनाओं को कैसे नियंत्रित करना चाहिए?

१. समझने के लिए परमेश्वर के करीब आएं:
जब हम चोट या निराश होते हैं, तो परमेश्वर की उपस्थिति में रहना महत्वपूर्ण है। उनके वचन में गहरई से जाए। जैसा कि भजन संहिता ११९:१०५ में बताया गया है, "तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।" उनका वचन स्पष्टता, ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करेगा।

२. क्षमा का अभ्यास करें:
कड़वाहट या आक्रोश को बनाए रखने से हमारे प्राण में जहर फैल सकता है और परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते में बाधा आ सकती है। याद रखें, जैसा कि प्रभु की प्रार्थना हमें याद दिलाती है, "...और जिस प्रकार हम ने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर।" (मत्ती ६:१२)

यद्यपि वेदना और निराशा महसूस होना स्वाभाविक है जब कोई व्यक्ति जो परमेश्वर के पीछे चलने का दावा करता है और उन्हें गलत तरीके से प्रस्तुत करता है, सावधान रहें कि बड़ी दृश्य को नज़रअंदाज़ न करें। मनुष्य की अपूर्णताएं हमें संपूर्ण परमेश्वर से दूर नहीं ले जानी चाहिए। इसके बजाय, उन्हें हमें उनके अपरिवर्तनीय प्रेम, अनुग्रह और ज्ञान की खोज में उनके करीब ले जाना चाहिए।
வாக்குமூலம்
मैं आज्ञा देता हूं और घोषित करता हूं कि न तो मृत्यु, न ही जीवन, न ही स्वर्गदूत, न ही शासक, न ही वर्तमान, न आने वाली चीजे, न शक्तियां, न ऊंचाई, न गहराई, न सारी सृष्टि में जो कुछ भी हो, वह हमें हमारे प्रभु मसीह यीशु में परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकेगा। यीशु के नाम में। आमेन।


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