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Daily Manna

दिन ०५: ४० दिन का उपवास और प्रार्थना

Tuesday, 26th of November 2024
53 38 723
Categories : उपवास और प्रार्थना

हे प्रभु, तेरी इच्छा पूरी हो जाए

"तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।" (मत्ती ६:१०)

जब हम परमेश्वर की इच्छा पूरी होने के लिए प्रार्थना करते हैं, तो हम परोक्ष रूप से उनसे अपना राज्य स्थापित करने और हमारे जीवन के लिए अपनी सिद्ध योजनाओं को पूरा करने के लिए मांग रहे होते हैं।

जब हम परमेश्वर की इच्छा पूरी होने के लिए प्रार्थना करते हैं तो हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है। उनकी इच्छा अपने आप हमारी जरूरतों को पूरा करती है, इसलिए हमें अपनी खुद की इच्छा को पूरा करने के लिए प्रयास करने की जरुरत नहीं है। जब हम परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए प्रार्थना करते हैं तो हमारा "खुद की", अहंकार और घमंड सूली पर चढ़ाया जाता है।

इससे पहले कि वह कार्य में आगे बढ़ सके, सांसारिक क्षेत्र में परमेश्वर की इच्छा के लिए प्रार्थना करने की जरुरत है। यदि हमारी प्रार्थना परमेश्वर को आमंत्रित नहीं करती है, तो वह कदम नहीं रखेगा।

हमें परमेश्वर की इच्छा जानने की जरुरत क्यों है?

१. यदि आप परमेश्वर की इच्छा को नहीं जानते हैं, तो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार प्रार्थना करना कठिन होगा

२ राजाओं ४:३३-३५ में, भविष्यद्वक्ता एलीशा और स्त्री जानते थे कि लड़के के लिए समय से पहले मरना परमेश्वर की इच्छा नहीं थी, इसलिए, भविष्यवक्ता एलीशा ने लड़का जीवित होने तक उत्साहपूर्वक प्रार्थना की। जब आप परमेश्वर की इच्छा से अनजान होते हैं, तो आप वह सब कुछ स्वीकार करेंगे जो जीवन प्रदान करता है।
 
२. यदि आप परमेश्वर की इच्छा को नहीं जानते हैं, तो आप पाप करने के लिए प्रलोभित होने पर असफल हो सकते हैं

मत्ती ४:१-११ में, यीशु ने शैतान की परीक्षाओं पर विजय प्राप्त की क्योंकि वह परमेश्वर की इच्छा को पूरी तरह से समझ गया था। हर मुद्दे पर, शैतान ने परमेश्वर के वचन को गलत तरीके से प्रस्तुत किया, लेकिन यीशु ने उसका विरोध किया। यदि आप परमेश्वर की इच्छा को नहीं जानते हैं, तो शैतान आपके जीवन के साथ खिलवाड़ करेगा और आपको फंसाएगा।

३. हमारी सुरक्षा, आशीष और धन परमेश्वर की इच्छा में है
यदि हम परमेश्वर की इच्छा से अनभिज्ञ हैं, तो शैतान हमारा फायदा उठा सकता है।
"हे प्रिय, मेरी यह प्रार्थना है; कि जैसे तू आत्मिक उन्नति कर रहा है, वैसे ही तू सब बातों मे उन्नति करे, और भला चंगा रहे।" (३ यूहन्ना २) कुछ लोग सोचते हैं कि बीमारी उनके जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा का हिस्सा है। कुछ लोगों को लगता है कि शायद परमेश्वर चाहता हैं कि वे गरीबी में एक विनम्र जीवन व्यतीत करें। उन्हें शैतान के कष्टों को स्वीकार करने के लिए धोखा दिया गया है। यह आपके जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध किसी भी चीज़ का विरोध करने का ये समय है।

४. हम परमेश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञा का पालन में तभी जी सकते हैं जब हम उसे जानते हैं
यदि हम परमेश्वर की इच्छा से अनजान हैं, तो हम खुद ही ऐसे कार्य करेंगे जो उनकी इच्छा के विरुद्ध हैं।

"तब मैं ने कहा, देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं।" (इब्रानियों १०:७)

५. जब भी हम परमेश्वर की इच्छा के अनुसार नहीं चलते हैं, शैतान हम पर हमला करने के लिए कार्य में आ जाता है
और न शैतान को अवसर दो। (इफिसियों ४:२७)

६. जब हम परमेश्वर की इच्छा के बाहर रहते हैं तो शैतान हम पर आरोप लगाता है (विरोध करता है)
फिर उसने यहोशू महायाजक को यहोवा के दूत के साम्हने खड़ा हुआ मुझे दिखाया, और शैतान उसकी दाहिनी ओर उसका विरोध करने को खड़ा था। (जकर्याह ३:१)
 
७. परमेश्वर अपनी इच्छा के बाहर कुछ भी कार्य नहीं कर सकता
तुम मांगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि बुरी इच्छा से मांगते हो, ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो। (याकूब ४:३)। जब हमारी प्रार्थनाएं परमेश्वर की इच्छा से बाहर होती हैं तो हम उत्तर प्राप्त नहीं कर सकते।

८. हम परमेश्वर की इच्छा के बाहर लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकते

४ तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते। ५ मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते। ६ यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली की नाईं फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं। ७ यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा। (यूहन्ना १५:४-७)

आपके जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा और योजना को जानने की २ महत्वपूर्ण कुंजियां
  • परमेश्वर के साथ चलना
आपको परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को विकसित करना या बढ़ाना चाहिए। आपको उन्हें जानने की कोशिश करनी चाहिए और उनके बारे में सिर्फ जानने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
 
आप उनके वचन में समय बिताकर, प्रार्थना के लिए समय निकालकर, और कलीसिया में शामिल होने और J-12 अगुवे के अधीन आने के हर अवसर का लाभ उठाकर उस रिश्ते को बेहतर तरीके से विकसित करनी चाहिए। जब आप अपने जीवन में इन अनुशासनों की खोज करेंगे, तो परमेश्वर उनकी योजना को आपके सामने प्रकट करने के लिए पहला कदम शुरू करेंगे।

तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा। (नीतिवचन ३:५-६)

  • जिसे आप पहले से ही परमेश्वर की इच्छा के रूप में जानते हैं, उसका पालन करना

ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं कि उनके जीवन के लिए परमेश्वर की योजना क्या है, परन्तु वे इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर देते हैं कि उनकी इच्छा का ९८ प्रतिशत पहले से ही उनके वचन के माध्यम से सावधानीपूर्वक प्रकट किया गया है। परमेश्वर अपनी इच्छा के कई, बहुत से पहलुओं के बारे में बहुत स्पष्ट है। उदाहरण के लिए, यह स्पष्ट रूप से उनकी योजना है कि हम व्यभिचार से दूर रहें।

क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यह है, कि तुम पवित्र बनो: अर्थात व्यभिचार से बचे रहो। (१ थिस्सलुनीकियों ४:३)।

यदि हम उन बातों का पालन नहीं करते हैं जिन्हें परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से अपनी इच्छा के रूप में दिखाया है, तो हम यह क्यों सोचेंगे कि वह हमारे जीवनों के लिए अपनी योजना के बारे में कोई और जानकारी प्रकट करेगा?

Bible Reading Plan :  Matthew : 25 - 28
Prayer
१. पिता, मेरे जीवन में यीशु के नाम में आपकी इच्छा पूरी हो जाए।

२. मेरे स्वर्गीय पिता ने मेरे जीवन में जो कुछ भी नहीं लगाया है, वह यीशु के नाम में अग्नि से नष्ट हो जाए।

३. परमेश्वर की यही इच्छा है, कि मैं उन्नति पाऊं; इसलिए, मैं यीशु के नाम में अपने जीवन में असफलता, हानि और देरी की कार्य को रोकता हूं।

४. परमेश्वर की इच्छा यह है, कि मेरा स्वास्थ्य अच्छा रहे; इसलिए, मैं यीशु के नाम में अपने शरीर में रखी गई हर बीमारी और रोग को नष्ट करता हूं।

५. परमेश्वर की इच्छा यह है, कि मैं लेनेवाला नहीं, पर देनेवाला बनु; इसलिए, मैं यीशु के नाम में मुझे कर्ज में डालने के शैतानी कार्य को नष्ट करता हूं।

६. यीशु के लहू के द्वारा, मेरे विरुद्ध हर व्यवस्था को यीशु के नाम में क्रूस पर चढ़ाया जाए।

७. यीशु के नाम में मुझ पर लक्षित किसी भी मंत्र, भविष्य-कथन, श्राप और बुराई को बिखेरता हूं।

८. यीशु के नाम में मैं, मेरे जीवन से बुराई, मृत्यु, शर्म, हानि, दर्द, अस्वीकार और देरी को दूर होने का आज्ञा देता हूं।

९. जितने हथियार मेरे हानि के लिये बनाई गई है, उन में से कोई सफल न होगा, और यीशु के नाम में, मैं हर उस जीभ की निंदा करता हूं जो मेरे विरुद्ध उठती है।

१०. प्रभु, यीशु के नाम में मुझे आपकी इच्छा पूरी करने और पृथ्वी पर आपके राज्य का बढ़ाने के लिए सशक्त कर।

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