क्या तुम अभी जानते हो कि प्रभु यीशु मसीह स्वर्ग में हैं, जो तुम्हारे और मेरे लिए मध्यस्थी कर रहा है ?
इब्रानियों ७:२५ हमें बताता है कि, “यही कारण है कि जो लोग उनके द्वारा परमेश्वर की शरण लेते हैं, वह उन्हें पूर्णत: बचाने में समर्थ हैं; क्योंकि वह उनकी ओर से निवेदन करने के लिए सदा जीवित हैं।”
और रोमियों ८:३४ हमें बताता है कि, "उन्हें कौन दोषी ठहरायेगा? क्या येशु मसीह ऐसा करेंगे? वह तो मर गये, बल्कि जी उठे और परमेश्वर के दाहिने हाथ विराजमान हो कर हमारे लिए निवेदन करते रहते हैं।"
मृतकों में से यीशु मसीह के पुनरुत्थान के बाद, यदि मध्यस्थता करना यीशु की सेवा है वह हमारी भी सेवा होनी चाहिए। मध्यस्थी सेवा ही अंतिम सेवा है।
यह सच है कि यीशु मसीह सिंहासन से सामने मध्यस्थी कर रहे हैं, यह स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि यीशु जीवित है और हमारा एक सिद्ध महायाजक बनने के लिए पिता से अधिकार प्राप्त किया है।
पुराने नियम में, महायाजकों को लोगों की ओर से कार्य करने के लिए ठहराया गया था।
१. "क्योंकि हर एक महायाजक मनुष्यों में से लिया जाता है, और मनुष्यों ही के लिये उन बातों के विषय में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, ठहराया जाता है: कि भेंट और पाप बलि चढ़ाया करे |" (इब्रानियों ५:१)
२. लेकिन इसे बार-बार करना पड़ा।
३. वे तो बहुत से याजक बनते आए, इस का कारण यह था कि मृत्यु उन्हें रहने नहीं देती थी। (इब्रानियों ७:२३)।
अंतर यह है कि ...
१. यीशु को केवल एक बार बलिदान लाने की जरुरत थी। तब वह मृतकों में से जी उठा। यह हमें उनकी बलिदान की मृत्यु के अनंत मूल्य को दर्शाता है।
२. "क्योंकि यह युगानुयुग रहता है; इस कारण उसका याजक पद अटल है, वह बिना अंत हमारे लिए मध्यस्ती करने में सक्षम है और वह हमेशा के लिए जारी रहेगा ।" (इब्रानियों ७:२४)
“अब हमारे परमेश्वर का उद्धार, और सामर्थ्य, और राज्य, और उसके मसीह का अधिकार प्रगट हुआ है; क्योंकि हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला, जो रात-दिन हमारे परमेश्वर के सामने उन पर दोष लगाया करता था, गिरा दिया गया। " (प्रकाशितवाक्य १२:१०)
शायद आपको कुछ परेशान कर रहा है और आपको शांति नहीं हैं। यह जान लें कि, अभी यीशु आपके और आपके प्रियजनों के लिए मध्यस्ती कर रहा है। यह सच्चाई आपकी आत्मा में शांति लाएगा ।
Bible Reading: Isaiah 65-66 ; Jeremiah 1
प्रार्थना
प्रभु यीशु, मैं आपको धन्यवाद देता हूं मुझे पिता के सामने दर्शाने के लिए। आप हमेशा मेरे लिए मध्यस्ती कर रहे हैं। मुझे भी इस सांत्वना (बात) को दूसरों के साथ बांटना सिखाएं। मुझे भी मध्यस्ती करना सिखाएं, आमीन ।
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