क्योंकि परमेश्वर प्रेम है। (१ यूहन्ना ४:८)
प्रेम कभी टलता नहीं (१ कुरिन्थियों १३:८)
मैं अक्सर सोचता हूं कि प्रेरित पौलुस इन वचनों को कैसे लिख सकता है। मसीहीयों को सताया जा रहा था। उन्हें प्रभु को अस्वीकार करने के प्रयास में रोमी द्वारा शेरों के गुफा में फेंक दिया जाता था। यह ऐसा लग रहा था कि जैसे नरक के द्वार परमेश्वर के लोगों के खिलाफ क्रूरता से आगे बढ़ रह है। ऐसे वचन लिखने के लिए, प्रेरित पौलुस के पास एक अलौकिक प्रकाशन था। ये वचन मानवीय दृष्टिकोण से नहीं लिखे जा सकते थे। पौलुस निश्चित रूप से पूरी तस्वीर देख रहा था।
ये समय जो हम वर्तमान में गुज़र रहे हैं, हमें यह महसूस कराएँ कि जैसे परमेश्वर ने हमें छोड़ दिया है। कुछ भी सही नहीं लग रहा है। नकारात्मकता प्रचलित होने लगती है और हम अक्सर आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि इन सब में परमेश्वर कहाँ ह?
रूत की पुस्तक हमें नाओमी नामक एक स्त्री से परिचित कराती है। क्योंकि वे अकाल का सामना करते हैं, वे एक परिवार के रूप में मोआब में स्थानांतरित होते हैं। चीजों को बसाने के बजाय, नाओमी का सामना उसके पति और दो बेटों की मौत से होती है। उसकी दो बहुएँ अब उसकी ही तरह विधवा हो गई हैं। इस मुद्दे पर, एक बहू उसे छोड़कर उसके रास्ते चली जाती है। नाओमी को दर्द पर दर्द, दुःख पर दुःख का सामना करना पड़ता है । दुःखी-निराश, निराश्रित, और अकेलापन, नाओमी ने निश्चित रूप से महसूस किया होगा कि परमेश्वर ने उसे
छोड़ दिया है।
हताशा में, वह अपने गृह नगर बेतलेहेम में वापस जाने का फैसला करती है। नाओमी को घर लौटते देख लोग उत्साहित थे। और स्त्रियां कहने लगीं, क्या यह नाओमी है? उसने उन से कहा, मुझे नाओमी (जिसका अर्थ है सुखद) न कहो, मुझे मारा (जिसका अर्थ है कड़वाहट) कहो, क्योंकि सर्वशक्तिमान् ने मुझ को बड़ा दु:ख दिया है। मैं भरी पूरी चली गई थी, परन्तु यहोवा ने मुझे छूछी करके लौटाया है। सो जब कि यहोवा ही ने मेरे विरुद्ध साक्षी दी, और सर्वशक्तिमान ने मुझे दु:ख दिया है, फिर तुम मुझे क्यों नाओमी कहती हो? (रूत १:१९-२१)
नाओमी केवल तस्वीर का हिस्सा दिख रही थी। क्या वह नहीं जानती थी कि इन सब में प्रभु उसको उद्धार की योजना में कुछ महानता से अगुवाई कर रहे थे। नाओमी की विश्वासयोग्य बहू, रूत बोअज़ से शादी करने के लिए जाती है। बोअज़ और रूत राजा दाऊद के परदादा बनते है, जो मसीहा, प्रभु यीशु मसीहके रक्त संबंध को ले चलते है।
क्या आप जानते हैं कि रोम में क्या हुआ था? कई रोमियों ने यीशु को अपने प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण किया। सताव के तहत मसीहत जंगल की आग की तरह बढ़ता गया। इतिहास इस बात का गवाह है कि तीस से भी कम वर्षों में, रोम दुनिया को प्रचारित किया गया था। प्रतीत होता है कि अपरिहार्य रोम साम्राज्य को परमेश्वर के प्रेम से जीत लिया गया था, और मसीहत रोम का आधिकारिक धर्म बन गया।
इस समय में, आप शायद खुद से पूछ रहे हैं कि, प्रभु ने मुझे उत्तर क्यों नहीं दिया? मैं आपको बने रहने के लिए प्रोत्साहित करना चाहता हूं। प्रभु इस दर्दनाक और कठिन समय का उपयोग आपके आत्मिक उन्नति में सीढ़ी के रूप में करेंगे। वास्तव में, प्रभु कभी असफल नहीं होता। आप जल्द ही उनकी भलाई की गवाही देंगे!
प्रार्थना
पिता, मुझे मेरे जीवन के इस समय में आपके वचन में दृढ़ रहने का अनुग्रह दें। हर दिन आत्मविश्वास के साथ सामना करने में मेरी मदद कर कि आप मेरे साथ हैं। यीशु के नाम में। आमेन!
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