"संत पतरस की मछली" का नाम मत्ती के सुसमाचार में एक कहानी से उत्पन्न होता है (मत्ती १७:२४-२७)
२४ जब वे कफरनहूम नगर में आये, तब मन्दिर का कर उगाहने वालों ने पतरस के पास आ कर पूछा, “क्या तुम्हारे गुरु मन्दिर का कर नहीं देते?”
२५ उसने उत्तर दिया, “हाँ, देते हैं।” जब पतरस घर पहुँचा, तो उसके कहने से पहले ही येशु ने पूछा, “सिमोन! तुम्हारा क्या विचार है? दुनिया के राजा किन लोगों से चुंगी या कर लेते हैं? अपने ही पुत्रों से या परायों से?”
२६ पतरस ने उत्तर दिया, “परायों से।” इस पर येशु ने उससे कहा, “तब तो पुत्र कर से मुक्त हैं। २७ फिर भी हम उन लोगों के लिए बुरा उदाहरण न बनें; इसलिए तुम झील के किनारे जा कर बंसी डालो। जो मछली पहले फँसेगी, उसे पकड़ लेना और उसका मुँह खोलना। उसमें तुम्हें चाँदी का एक सिक्का मिलेगा। उसे ले लेना और मेरे तथा अपने लिए उन को दे देना।”
संत पतरस की मछली को तिलापिया भी कहा जाता है। मछलियों की यह प्रजाति सिक्लिडाय परिवार का हिस्सा है और गर्म ताजे पानी के जलाशयों में पनपती है (जैसे कि गलील सागर)
लेकिन पतरस ने किस तरह की मछली पकड़ी? जबकि हम पूर्ण निश्चितता के साथ यह नहीं बता सकते कि वह कौन सी मछली थी जिसे पतरस ने पकड़ा, एक बात निश्चित है कि जिस मछली को आपने "संत पतरस की मछली" रूप में परोसा है वह सबसे अधिक स्वादिष्ट साबित होगी।“
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