आमोन के पुत्र यहूदा के राजा योशिय्याह के दिनों में, सपन्याह के पास जो हिजकिय्याह के पुत्र अमर्याह का परपोता और गदल्याह का पोता और कूशी का पुत्र था, यहोवा का यह वचन पहुंचा।
सपन्याह एक असामान्य भविष्यद्वक्ता था, जिसमें वह शाही वंश का था, जो धर्मी राजा हिजकिय्याह के वंश से था।
और जो यहोवा के पीछे चलने से लौट गए हैं, और जिन्होंने न तो यहोवा को ढूंढ़ा,
और न उसकी खोज में लगे, उन को भी मैं सत्यानाश कर डालूंगा॥ (सपन्याह १:६)
यह वचन हमें आत्मिक उदासीनता (लापरवाही) की एक अद्भुत परिभाषा देती है। यहूदा के लोग परमेश्वर के प्रति उदासीन हो गए थे और उनकी उपासना करने से पीछे हट गए और मूर्ति पूजा की ओर मुड़ गए।
आज भी, कई ऐसे लोग हैं जो खुद को 'विश्वासी' कहते हैं। हालाँकि, उन्हें बाइबल पढ़ने, प्रार्थना करने और इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत महसूस नहीं होती है कि हर दिन उनके लिए वचन क्या है। क्या आप उस जाल में फस गए हैं?
हालाँकि यीशु स्वयं परमेश्वर के पुत्र और पिता के साथ था, लेकिन धरती पर रहते हुए उन्होंने प्रार्थना को अपने जीवन में प्राथमिकता दी। भोर को दिन निकलने से बहुत पहले वह उठता था और प्रार्थना करने के लिए एकान्त जंगली स्थान पर जाता था। (मरकुस १:३५)
इतिहासकार अर्नोल्ड टोयनबी ने अपने अध्ययन में पाया कि इक्कीस सभ्यताओं में से उन्नीस की मृत्यु लापरवाही से हुई है, न कि बाहर की क्षेत्र से।
हम लापरवाही के दिन में जी रहे हैं और यह हमारे जीवन के लिए घातक होगा यदि हम परमेश्वर से हमें क्षमा करने और बाइबिल के सिद्धांतों पर वापस जाने के लिए नहीं कहेंगे क्योंकि परमेश्वर हमसे जीने की उम्मीद करता हैं।
उस समय मैं दीपक लिए हुए
यरूशलेम में ढूंढ-ढांढ़ करूंगा,
और जो लोग दाखमधु के तलछट
तथा मैल के समान बैठे हुए है॥ (सपन्याह १:१२)
परमेश्वर के न्याय के खिलाफ कोई भी छिपने में सक्षम नहीं होगा। यह आ रहा है, और भले ही परमेश्वर को "दीपक" लिए हुए निकलना चाहिए, वह उन्हें ढूंढ लेगा।
मन में कहते हैं कि
यहोवा न तो भला करेगा और न बुरा,
उन को मैं दण्ड दूंगा। (सपन्याह १:१२)
यह शैतान का झूठ है: "यहोवा न तो भला या न तो बुरा करेगा।"
"चिंता मत करो। परमेश्वर परेशान नहीं है। देखो, हम इतने लंबे समय से इस तरह से रह रहे हैं, और कुछ भी बुरा नहीं हुआ है।"
आत्मसंतोष (प्रसन्नता) हानिरहित दिखती है लेकिन यह मृतक के समान है। आत्मसंतोष के कारण अतीत के साम्राज्य गिर गए हैं, लड़ाई और खेल आत्मसंतोष के कारण हार गई हैं।
आज धर्म के प्रति मनोदृष्टि,
सभी धर्मों को लोग समान रूप से सत्य मानते हैं।
सभी धर्मों को तत्त्वज्ञानी समान रूप से असत्य मानते हैं।
सभी धर्मों को राजनीति वाले समान रूप से उपयोगी मानते हैं।
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