पवित्र वस्तु कुत्तों को न दो, और अपने मोती सूअरों के आगे मत डालो; ऐसा न हो कि वे उन्हें पांवों तले रौंदें और पलट कर तुम को फाड़ डालें॥ (मत्ती ७:६)
सभी को निर्देश (उपदेश) नहीं मिलेगा। हमें यह समझने के लिए आत्मिक ज्ञान की जरुरत है कि कौन ग्रहणशील (लाभत्मक) है और कौन नहीं।
मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। (मत्ती ७:७)
निम्नलिखित वचनों के प्रकाश में मांगना और पाना आवश्य देखा जा सकता है:
हमें विश्वास में मांगना है (मत्ती २१:२२ और मरकुस ११:२४)
हमें बिना संदेह से मांगना है (याकूब १:५-७)
हमें परमेश्वर की इच्छा के अनुसार मांगना है (१ यूहन्ना ५:१४-१५)
हमें अपने भीग विलास में उड़ाने के लिए मांगना नहीं है। (याकूब ४:२-३)
ढूंढना और खटखटाना भी मत्ती ६:३३ के प्रकाश में होना चाहिए। यदि हम परमेश्वर को ढूंढने से अधिक कुछ और ढूंढ रहे हैं, तो हम अपनी जरूरतों में रूकावट डाल रहे हैं।
इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो। (मत्ती ७:१२)
आप एक व्यवस्था में दस आज्ञाओं को रख (छिपा) सकते हैं।
जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। (मत्ती ७:२१)
विश्वास का एक मौखिक स्वीकार काफी नहीं है। हम जो विश्वास करते है उस में हमें वास्तव में जीना है। आज हम कलीसिया सभाओं, प्रार्थना सभाओं और रिट्रीट में सैकड़ों लोगों को आते देखते हैं - जो कि अच्छा है, लेकिन फिर उनका जीवन उन बातों को प्रतिबिंबित नहीं करता है जो वे विश्वास करते हैं। यह वास्तव में कुछ लोगों को टाल देता है। यह सुसमाचार में बाधा (रूकावट) डालता है। महात्मा गांधी ने कहा, "मैं मसीह और उनकी शिक्षाओं से प्रेम करता हूं लेकिन मैं मसीहीयों को पसंद नहीं करता हूं।" महात्मा गांधी ने ऐसा क्यों कहा?
लूका ६:४६ में, यीशु ने कहा, जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो क्यों मुझे हे प्रभु, हे प्रभु, कहते हो?
क्योंकि परमेश्वर के यहां व्यवस्था के सुनने वाले धर्मी नहीं, पर व्यवस्था पर चलने वाले धर्मी ठहराए जाएंगे। (रोमियो २:१३)
इसलिये जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता है वह उस बुद्धिमान मनुष्य की नाईं ठहरेगा जिस ने अपना घर चट्टान पर बनाया। और मेंह बरसा और बाढ़ें आईं, और आन्धियां चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उस की नेव चट्टान पर डाली गई थी।
परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता वह उस निर्बुद्धि मनुष्य की नाईं ठहरेगा जिस ने अपना घर बालू पर बनाया। और मेंह बरसा, और बाढ़ें आईं, और आन्धियां चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं और वह गिरकर सत्यानाश हो गया॥ (मत्ती ७:२४-२७)
एक ही कारण कि एक मनुष्य को बुद्धिमान कहा गया और दूसरा मूर्ख (निर्बुद्धि) इसलिए क्योंकि एक ने मसीह की शिक्षा को सुना और उसके अनुसार चला जबकि दूसरे ने केवल सुना, सुनता रहा लेकिन उन चीजों को कभी नहीं किया। यह बुद्धिमान और मूर्ख होने के बीच का अंतर है।
एक दिन एक सड़ा हुआ दांत वाला मनुष्य हमारी सभा में आया तो मैंने प्रार्थना की और उसे ब्रश और टूथपेस्ट भी दिया। अगली सभा में, वह आया और वह पहले से भी बदतर था। मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ और उसने कहा, मैंने अपने तकिया के नीचे ब्रश और पेस्ट को ईमानदारी से रखा। आप में से कितने लोग जानते हैं कि ऐसा करना बहुत बुद्धिमानी की बात नहीं है। अब, यह सिर्फ एक दृष्टांत है लेकिन मुझे यकीन है कि आपको यह बात समझ आ गई है।
आपके जीवन में परिवर्तन तभी आएगा जब आप परमेश्वर का वचन का कार्य करते है। उपदेशक, कलीसिया या प्रार्थना सभा को दोष न दें।
दुनिया ने अनुभव लोगों का बहुत सम्मानित किया है क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने चीजों को सुना, सीखा और अभ्यास किया है। इसलिए वे लोग भी जो वचन पर कार्य करते हैं, वे परमेश्वर के राज्य में बहुत सम्मानित हैं।
१. उनमें से हर एक ने एक घर बनाया, लेकिन उन्होंने इसे अलग-अलग तरीकों से बनाया।
२. बुद्धिमान मनुष्य के खिलाफ आने वाली वही चीजें भी मूर्ख मनुष्य के खिलाफ आईं - हवा, बाढ़ और बारिश आई। हर घर को एक ही परीक्षा के अधीन किया गया था। न तो घर परीक्षण से मुक्त था। वही तूफान जिसने एक घर को मारा दूसरे को भी मारा। मसीही जीवन तूफान रहित जीवन नहीं है। हम तूफानों से गुजरेंगे। परमेश्वर ने अपने वचन में कभी नहीं कहा कि तूफान कभी नहीं होंगे। कोई भी संदेश जो कहता है कि आपके जीवन में कभी तूफान नहीं आएगा तो वह धोखा है।
वास्तव में, पौलुस और बरनबास ने शुरुआती कलीसिया से कहा, "हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा" (प्रेरितों के काम १४:२२)।
लूका में एक महत्वपूर्ण विवरण बताया गया है जो मत्ती में नहीं है।
यह कहता है कि जो व्यक्ति मूल (आधार) तक पहुंचना चाहता था उसे गहरी खुदाई करनी थी। मूल पर निर्माण करने से पहले उन्हें बहुत सारी चीजें प्राप्त करनी थीं। यह हम में से कई लोगों के साथ भी यह सच है। हम में से अधिकांश लोगों के लिए जो नाममात्र की मसीही संस्कृति (जीवन) में पले-बढ़े हैं, बहुत सी अड़चनें (रुकावटे) और प्रभाव हैं जिनसे हमें मूल तक पहुँचने से पहले ही बाहर निकाला जाना चाहिए। दूसरें, भी, जो पूरी तरह से गैर-मसीही संस्कृति में पले-बढ़े हैं, उनको भी चीजों की निकाल देना होगा, लेकिन वे अलग होंगे।
१. परंपरा (रीति रिवाज)
२. ठेस पहुंचना
वचन में हमेशा कुछ चीजें होंगी जो आपको ठेस पहुंचाती हैं।
कलीसिया में हमेशा ऐसे लोग होंगे जो आपको ठेस पहुंचाते हैं।
नींव
एकमात्र कारण यह है कि एक घर खड़ा था और दूसरा गिर गया क्योंकि नींव में अंतर था। एक नींव रेत पर थी और दूसरी नींव चट्टान पर थी। रेत हमेशा हिलती रहती है जबकि चट्टान दृढ़ - स्थिर है। रेत संसार का शास्त्र है। जबकि चट्टान परमेश्वर का वचन है।
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