चलिए करुणा और सहानुभूति के बीच के अंतर को समझते हैं। सोचिए कि आप अपनी कार चला रहे हैं और जैसे ही आप ट्रैफ़िक सिग्नल पर रुकते हैं, एक छोटा बच्चा मुड़े हुए हाथ के साथ आपके पास आता है और पैसे की भीख मांगता है। आप दुःखी महसूस करते हैं और खुद सोचते हैं कि, "कितना दुखद है।" आप अपना बटुआ निकालते हैं, लेकिन इससे पहले कि आप कुछ कर पाएँ, सिग्नल हरा हो जाता है। आप पेडल दबाते हैं और बच्चे को पीछे छोड़कर भाग जाते हैं। आपको खेद हुआ, लेकिन आपकी ओर से कोई कार्य नहीं हुई। यह सहानुभूति है।
सहानुभूति एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है, जो किसी और के दुर्भाग्य के लिए दया या दुःख की भावना है। यह एक निष्क्रिय प्रतिक्रिया है जो आपको कार्य करने के लिए बाध्य नहीं करती है। सहानुभूति कहती है, "मुझे आपके प्रति बुरा लग रहा है," लेकिन इसे यहीं छोड़ दें।
अब, इसकी तुलना करुणा से करते है।
उसी दृष्टांत के बारे बारे में सोचिए, लेकिन इस बार, केवल खेद महसूस करने के बजाय, आप कार्य करने का निर्णय लेते हैं। आप अपनी कार से उतरते हैं, बाहर आते हैं, और बच्चे के पास जाते हैं। आप उसके स्तर तक घुटने टेकते हैं, उससे धीरे से बात करते हैं, और फिर उसे चिकित्सा के लिए पास के क्लिनिक में ले जाते हैं। आप सुनिश्चित करते हैं कि उसका इलाज हो और उसे किसी स्थानीय दानी संस्था से जोड़ते निरंतर सहायता प्रदान कर सके। यही करुणा है।
करुणा खेद महसूस करने से कहीं आगे जाती है; यह आपको कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। करुणा कहती है, "मुझे आपके प्रति बुरा लग रहा है, और मैं मदद करने जा रहा हूं।" यह आपको परिस्थिति में कदम उठाने, जोखिम लेने और एक ठोस बदलाव लाने के लिए मजबूर करती है।
यीशु की करुणा का उदाहरण
प्रभु यीशु मसीह का जीवन करुणा का सर्वोत्तम उदाहरण है। मरकुस १:४०-४२ में, एक कोढ़ी यीशु के पास आता है, उनसे विनती करता है और घुटने टेककर कहता है, "यदि आप चाहें, तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं।" करुणा से प्रेरित होकर, यीशु अपना हाथ आगे बढ़ाते हैं और कोढ़ी को छूते हैं, और कहते हैं, "मैं चाहता हूं; शुद्ध हो जाओ।" तुरन्त, कोढ़ उस व्यक्ति से दूर हो जाता है, और वह चंगा हो जाता है।
कोढ़ी समाज में बहिष्कृत थे, उन्हें अलग-थलग रहने और जहाँ भी वे जाते थे, अपनी अशुद्धता की घोषणा करने के लिए मजबूर किया जाता था। कोढ़ी को छूना सामाजिक और धार्मिक रूप से निषिद्ध था क्योंकि यह व्यक्ति को औपचारिक रूप से अशुद्ध बनाता था। लेकिन यीशु की पवित्रता और शुद्धता कोढ़ी की अशुद्धता से कहीं अधिक थी। करुणा से प्रेरित होकर, यीशु ने इन सभी सामाजिक मानदंडों को तोड़ दिया। उनके स्पर्श ने स्वीकार, चंगाई और पुनर्स्थापना का संदेश दिया।
मदर टेरेसा: करुणा का एक आधुनिक उदाहरण
मदर टेरेसा का जीवन आधुनिक युग में करुणा का उदाहरण है। उन्हें सिर्फ़ कलकत्ता की सड़कों पर बेसहारा और मरते हुए लोगों के लिए तरस नहीं आया; उन्होंने कार्य भी की। उन्होंने बीमार और मरते हुए लोगों के लिए घर बनाए, अपने हाथों से उनकी देखरेख की और अनगिनत लोगों को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। उनकी करुणा ने उन्हें काम करने, दूसरों की पीड़ा में शामिल होने और राहत और उम्मीद लाने के लिए प्रेरित किया।
करुणा का क्रियात्मक लागु
करुणा आपको कार्य करने के लिए प्रेरित करेगी। जब आप किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति से मिलें, तो सिर्फ़ यह न कहें, "अरे, कितना दिखी की बात है।" इसके बजाय, अपने आप से पूछें, "मैं उसकी मदद के लिए क्या कर सकता हूं?" अगर कोई कैंसर से पीड़ित है, तो सिर्फ़ दुख व्यक्त न करें; उनके लिए प्रार्थना करें, उनसे मिलें और उनकी यात्रा में उनका साथ दें। यही सच्ची करुणा है।
लूका १०:२५-३७ में अच्छे सामरी की कहानी पर विचार करें। जब दूसरे लोग घायल व्यक्ति के पास से गुज़रे, तो सामरी रुक गया, उसके घावों की देखरेख की और सुनिश्चित किया कि वह चंगा हो जाए। उसने सिर्फ़ खेद महसूस नहीं किया; उसने कार्य किया। यह दृष्टांत हमें सिखाता है कि हमारा पड़ोसी कोई भी ज़रूरतमंद व्यक्ति है, और सच्ची करुणा के लिए हमें सिर्फ़ महसूस करने की नहीं, बल्कि कार्य करने की ज़रूरत होती है।
कार्य करने का बुलाहट
मसीह के पीछे चलनेवाले के नाते, हमें करुणा को बनाए रखने के लिए बुलाया गया है। १ यूहन्ना ३:१८ कहता है, "हे बालकों, हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें।।" सच्ची करुणा में अपने विश्राम के दायरे से बाहर निकलना शामिल है, ठीक वैसे ही जैसे यीशु ने किया था, और किसी के जीवन में बदलाव लाना।
करुणा एक मुस्कान, सुनने वाला कान, मध्यस्थता या मदद करने वाला हाथ जितना सरल हो सकता है। यह किसी की शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने, संकट के दौरान उनका समर्थन करने या उनकी ओर से न्याय की वकालत करने जितना महत्वपूर्ण भी हो सकता है। करुणा का हर कार्य, चाहे बड़ा हो या छोटा, गहरा प्रभाव डालता है।
अगली बार जब आप किसी को ज़रूरतमंद देखें, तो सिर्फ़ दुखी न हों। खुद से पूछें, "मैं मदद के लिए क्या कर सकता हूं?" चाहे वह भोजन उपलब्ध कराना हो, सफर करने की पेशकश करना हो, या बस मौजूद रहना हो, आपका कार्य आशा और चंगाई ला सकता है।
करुणा जीवन को बदल देती है। यीशु की करुणा का उदाहरण हमें क्रिया-प्रेरित प्रेम की सामर्थ दिखाता है। सहानुभूति से आगे बढ़कर करुणा की ओर कदम बढ़ाकर, हम अपने आस-पास के लोगों के जीवन में सार्थक बदलाव ला सकते हैं। जैसे-जैसे हम यीशु के मार्ग पर चलते हैं, हम करुणामयी लोग बनने के लिए प्रतिबद्ध हों, कार्य करने के लिए तैयार रहें और ज़रूरतमंदों तक परमेश्वर का प्रेम पहुंचाएं।
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