विश्वास की यात्रा में, ऐसे क्षण आते हैं जो हमारे जीवन में परमेश्वर की सामर्थ के परिमाण पर चिंतन की मांग करता हैं। याबेस की कहानी, जैसा १ इतिहास ४:९-१० में वर्णित है,
९और याबेस अपने भाइयों से अधिक प्रतिष्ठित हुआ, और उसकी माता ने यह कहकर उसका नाम याबेस रखा, कि "मैं ने इसे पीड़ित हो कर उत्पन्न किया।" १०और याबेस ने इस्राएल के परमेश्वर को यह कह कर पुकारा, कि "भला होता, कि तू मुझे सचमुच आशीष देता, और मेरा देश बढाता, और तेरा हाथ मेरे साथ रहता, और तू मुझे बुराई से ऐसा बचा रखता कि मैं उस से पीड़ित न होता!" और जो कुछ उसने मांगा, वह परमेश्वर ने उसे दिया।
याबेस की अनुरोध (पुकार):
याबेस की कहानी प्रार्थना और नम्रता की सामर्थ के प्रमाण के रूप में सामने आती है। दर्द में उत्पन हुआ, उसका नाम ही पीड़ा की याद दिलाता है, याबेस ने अपनी परिस्थितियों से परिभाषित होने से इनकार कर दिया। इसके बजाय, वह न केवल आशीष और बढ़ोतरी के लिए बल्कि दैवी मार्गदर्शन और बुराई से सुरक्षा के लिए एक साहसिक अनुरोध के साथ परमेश्वर की ओर मुड़ा। उसकी प्रार्थना परमेश्वर के हाथ की परिवर्तन की सामर्थ की गहरी समझ को दर्शाती है।
याबेस की कहानी बाइबिल की अन्य कहानियों से मेल खाती है जो परमेश्वर के सामर्थशाली मध्यस्थी पर जोर देती है। जब यहोशू ने यरदन नदी के पार इस्राएलियों का अगुवाई किया (यहोशू ४:२०-२४), तो यह अपने उद्देश्यों के लिए स्वाभाविक व्यवस्था को बदलने की परमेश्वर की क्षमता का स्पष्ट प्रदर्शन था। इसी तरह, नीतिवचन २१:१ हमें याद दिलाता है कि राजाओं के हृदय भी परमेश्वर के नियंत्रण में होते हैं। ये उदाहरण केवल ऐतिहासिक घटनाएँ नहीं हैं बल्कि आज भी प्रासंगिक हैं, जो इस बात का प्रतीक हैं कि परमेश्वर परिस्थितियों को हमारे पक्ष में कैसे बदल सकता है।
मानवीय सीमा से परे
आज के समय में परिस्थितियों से बंधे या सीमित होने की धारणा साधारण है। हालाँकि, बाइबिल की सच्चाई यह है कि परमेश्वर का हाथ हमारी वास्तविकता को बदल सकता है, दरवाजे खोल सकता है और उन तरीकों से ह्रदय बदल सकता है जिनकी हम थाह नहीं ले सकते। याबेस और यहोशू की कहानियाँ केवल प्राचीन कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि आज भी प्रासंगिक और जीवंत हैं, आशा और आश्वासन प्रदान करती हैं।
उन लोगों के लिए जो परमेश्वर का आदर करते हैं, वादा केवल तात्कालिक बाधाओं पर काबू पाने के बारे में नहीं है बल्कि आपके विधान में एक महत्वपूर्ण बदलाव के बारे में है। यह परिवर्तन केवल मानवीय प्रयास से नहीं बल्कि परमेश्वर के शक्तिशाली हाथ से हुआ है। यह बदलाव भौतिक सफलता तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें आत्मिक विकास, भावनात्मक चंगाई और संबंधपरक पुनःस्थापित शामिल है।
विश्वास और कार्य की भूमिका
परमेश्वर के शक्तिशाली हाथ के मार्गदर्शन में जीने के लिए सक्रिय विश्वास की जरुरत होती है। यह परिस्थितियों को बदलने की उनकी सामर्थ में विश्वास करने के साथ-साथ उनकी इच्छा के अनुरूप कदम उठाने के बारे में है। इसमें प्रार्थना और उनके वचनों के माध्यम से परमेश्वर के साथ निरंतर बातचीत, जीवन के हर पहलू में उनका मार्गदर्शन प्राप्त करना शामिल है।
हमारे जीवन में परमेश्वर के मध्यस्थी को पहचानने के लिए उनकी उपस्थिति के प्रति समर्पित हृदय की जरुरत होती है। यह सामान्य में असाधारण को देखने और हमारे दैनिक जीवन के अनुभवों में उनकी हस्तकार्य को स्वीकार करने के बारे में है। यह मान्यता उनकी योजनाओं में कृतज्ञता और भरोसे की गहरी भावना को बढ़ावा देती है।
आज, जब हम परमेश्वर के हाथ की सामर्थ पर विचार करते हैं, तो हम हमारे लिए उनकी योजना की पूर्णता में कदम उठाने के लिए प्रेरित हों जाए। याबेस की तरह, हममें निडरता से मांगने का साहस हो, और यहोशू की तरह, हममें परमेश्वर के अगुवाई का पालन करने का विश्वास हो, भले ही यह असंभव लगे। याद रखें, यह केवल हमारी क्षमताओं के बारे में नहीं है बल्कि हमारे जीवन पर परमेश्वर के हाथ के बारे में भी है।
प्रार्थना
स्वर्गीय पिता, आपके सामर्थशाली हाथ की छाया में, हमें सामर्थ और आशा मिलती है। हमारा मार्गदर्शन कर, हमारी परिस्थितियों को बदल, और हमें उस विधान की ओर ले जाएं जिसे आपने नियुक्त किया है। हम अपने जीवन में सदैव आपके सामर्थशाली हाथ को पहचान पाए। यीशु के नाम में। आमेन।
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