इस्त्राएलियों से यह कहना, कि मेरे लिये भेंट लाएं; जितने अपनी इच्छा से देना चाहें उन्हीं सभों से मेरी भेंट लेना। (निर्गमन २५:२)
अपनी इच्छा के अनुसार न की जबरदस्ती से……
हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देने वाले से प्रेम रखता है। (२ कुरिन्थियों ९:७)
भेंट का उद्देश्य
और वे मेरे लिये एक पवित्रस्थान बनाए, कि मैं उनके बीच निवास करूं। (निर्गमन २५:८)
तम्बू बनाने के लिए ताकि परमेश्वर वह निवास कर सकें। आज के समय में परमेश्वर के राज्य का निर्माण करना, सुसमाचार का प्रसार करना।
जो कुछ मैं तुझे दिखाता हूं, अर्थात निवासस्थान और उसके सब सामान का नमूना, उसी के अनुसार तुम लोग उसे बनाना॥ (निर्गमन २५:९)
अपने जीवन का प्रतिरूप प्रभु से होना चाहिए
अपने सेविकाई का प्रतिरूप प्रभु से होना चाहिए
तो हम जो कुछ भी करेंगे उस पर परमेश्वर की महिमा वास करेगी।
वाचा के सन्दूक के लिए योजनाएँ
निर्गमन २५:१०-२२
मेज़ पर रोटियां
निर्गमन २५:२३-३०
और मेज़ पर मेरे आगे भेंट की रोटियां नित्य रखा करना॥ (निर्गमन २५:३०)
वचन को उपस्तिति की रोटी भी कहा जा सकता है
दीवट के लिए योजनाएं
सोने की एक प्रतिभा लगभग ३३ किग्रा (निर्गमन २५:३९)
दिलचस्प बात यह है कि अपना परमेश्वर इस धरती पर ३३ वर्ष तक जिए थे।
Chapters
- अध्याय १
- अध्याय २
- अध्याय ३
- अध्याय ४
- अध्याय ५
- अध्याय ६
- अध्याय ७
- अध्याय ८
- अध्याय ९
- अध्याय १०
- अध्याय ११
- अध्याय १२
- अध्याय १३
- अध्याय १४
- अध्याय १५
- अध्याय १६
- अध्याय १७
- अधाय १८
- अध्याय १९
- अध्याय २०
- अध्याय २१
- अध्याय २२
- अध्याय २३
- अध्याय २४
- अध्याय २५
- अध्याय २६
- अध्याय २७
- अध्याय २८
- अध्याय २९
- अध्याय ३०
- अध्याय ३१
- अध्याय ३२
- अध्याय ३३
- अध्याय ३४
- अध्याय ३५
- अध्याय ३६
- अध्याय ३७
- अध्याय ३८
- अध्याय ३९
- अध्याय ४०