जब मैं चुप (इससे पहले कि मैं कबूल करूं) रहा तब दिन भर कराहते कराहते मेरी हडि्डयां पिघल गई। (भजन संहिता ३२:३)
यह चुप (शांत) पाप को इस आशा के साथ स्वीकार करने के लिए एक ज़बरदस्त प्रतिरोध है कि समय पर पाप को भुला दिया जाएगा और दंड खत्म हो जाएगा।
क्योंकि रात दिन मैं तेरे (अप्रसन्नता का) हाथ के नीचे दबा रहा; और मेरी तरावट धूप काल की सी झुर्राहट बनती गई॥ (भजन संहिता ३२:४)
पाप की अंगीकार की कमी हड्डियों को बर्बाद कर देती है। क्या ऐसा हो सकता है कि पाप सचमुच हड्डियों को प्रभावित करता है? आत्मिक स्तर पर, अंगिकार की कमी से प्रभु अप्रसन्न होता है। नमी (गीलापन) अभिषेक का एक प्रतीकात्मक संदर्भ है जो तब सूख सकता है जब हमने प्रभु के सामने अपने पाप को स्वीकार नहीं किया है।
इस कारण हर एक भक्त तुझ से ऐसे समय में प्रार्थना करे जब कि तू मिल सकता है। निश्चय जब जल (परीक्षा) की बड़ी बाढ़ आए तौभी उस (आत्मा में) भक्त के पास न पहुंचेगी। (भजन संहिता ३२:६)
आत्मिक की चिन्ह इस बात से प्रतिबिंबित होती है कि आप प्रार्थना में कितना समय व्यतीत करते हैं।
तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते,
उनकी उमंग लगाम और बाग से रोकनी पड़ती है,
नहीं तो वे तेरे वश में नहीं आने के॥ (भजन संहिता ३२:९)
जिन लोगों में समझ की कमी होती है, वे तब तक प्रभु के निकट नहीं आते जब तक कि वे अनुशासित न हों। परमेश्वर नहीं चाहते कि उनके लोग घोड़े और खच्चर की तरह हों, जिन्हें किसी खास दिशा में जाना हो तो उन्हें अनुशासित रहने की जरूरत है। वह अपने लोगों से उम्मीद करता है कि उनके वचन के निर्देश का तुरंत उत्तर दें।
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