परमेश्वर यहेजकेल को इस्राएल भेज रहा है यह कहने के लिए कि वह उनसे क्या कहना चाहता है। स्वयं ईश्वर ने इस्राएल को एक बलवा (विद्रोही) करने वाली जाती के रूप में वर्णित किया: (यहेजकेल २:१-४)
बलवा करने वाली जाती
परमेश्वर के विरूद्ध अपराध
निर्लज्ज और हठीले (जिद्दी) लोग
आज, बहुत से मसीह लोग परमेश्वर का ज्ञान होने के बाद भी अभी भी इस्राएल के लोगों की तरह ही विद्रोही हैं।
और हे मनुष्य के सन्तान, तू उन से न डरना; चाहे तुझे कांटों, ऊंटकटारों और बिच्छुओं के बीच भी रहना पड़े, तौभी उनके वचनों से न डरना; यद्यपि वे बलवई घराने के हैं, तौभी न तो उनके वचनों से डरना, और न उनके मुंह देख कर तेरा मन कच्चा हो। सो चाहे वे सुनें या न सुनें; तौभी तू मेरे वचन उन से कहना, वे तो बड़े बलवई हैं। (यहेजकेल २:६-७)
डर अक्सर हमें हमारे यहोवा के लिए गवाही बनने से रोकता है। अगर लोग हमारे संदेश को अस्वीकार करते है इसका यह मतलब नहीं है कि हम विफल हो गए हैं।
जो मैं तुझे देता हूँ, उसे मुंह खोल कर खा ले। तब मैं ने दृष्टि की और क्या देख, कि मेरी ओर एक हाथ बढ़ा हुआ है और उस में एक पुस्तक है। उसको उसने मेरे साम्हने खोल कर फैलाया, ओर वह दोनों ओर लिखी हुई थी; और जो उस में लिखा था, वे विलाप और शोक और दु:ख भरे वचन थे। (यहेजकेल २:९-१०)
परमेश्वर ने नबी यहेजकेल को एक संदेश दिया। यह संदेश उस संदेश का प्रतीकात्मक रूप से खाया जाना था जो सचमुच आपके व्यवस्था का हिस्सा बन रहा है। एक संदेश का प्रचार करना एक बात है और दूसरा संदेश बनना।
हम वही देखते हैं जो प्रकाशितवाक्य १०:९-११ में प्रेरित यूहन्ना के साथ हुआ, और मैं ने स्वर्गदूत के पास जा कर कहा, यह छोटी पुस्तक मुझे दे; और उस ने मुझ से कहा ले इसे खा ले, और यह तेरा पेट कड़वा तो करेगी, पर तेरे मुंह में मधु सी मीठी लगेगी। सो मैं वह छोटी पुस्तक उस स्वर्गदूत के हाथ से ले कर खा गया, वह मेरे मुंह में मधु सी मीठी तो लगी, पर जब मैं उसे खा गया, तो मेरा पेट कड़वा हो गया। तब मुझ से यह कहा गया, कि तुझे बहुत से लोगों, और जातियों, और भाषाओं, और राजाओं पर, फिर भविष्यद्ववाणी करनी होगी॥
Chapters
- अध्याय १
- अध्याय २
- अध्याय ३
- अध्याय ४
- अध्याय ५
- अध्याय ६
- अध्याय ७
- अध्याय ८
- अध्याय ९
- अध्याय १०
- अध्याय ११
- अध्याय १२
- अध्याय १३
- अध्याय १४
- अध्याय १५
- अध्याय १६
- अध्याय १७
- अध्याय २१
- अध्याय २२
- अध्याय २६
- अध्याय २७
- अध्याय २९
- अध्याय ३०
- अध्याय ३१
- अध्याय ३२
- अध्याय ३३
- अध्याय ३४
- अध्याय ३५
- अध्याय ३६
- अध्याय ३७
- अध्याय ३८
- अध्याय ४७
- अध्याय ४८