फारस में दारा के राज्याकाल के चौथे वर्ष, जकर्याह को यहोवा का एक संदेश मिला। यह नौवे महीने का चौथा दिन था। (अर्थात् किस्लव।) 2 बेतेल के लोगों ने शेरसेर, रेगेम्मेलेक और अपने साथियों को यहोवा से एक प्रश्न पूछने को भेजा। 3 वे सर्वशक्तिमान यहोवा के मंदिर में नबियों और याजकों के पास गए। उन लोगों ने ने उनसे यह प्रश्न पूछा: “हम ने कई वर्ष तक मंदिर के ध्वस्त होने का शोक मनाया है। हर वर्ष के पाँचवें महीने में, रोने और उपवास रखने का हम लोगों का विशेष समय रहा हैं। क्या हमें इसे करते रहना चाहिये?”
4 मैंने सर्वशक्तिमान यहोवा का यह सन्देश पाया है: 5 “याजकों और इस देश के अन्य लोगों से यह कहो: जो उपवास और शोक पिछले सत्तर वर्ष से वर्ष के पाँचवें और सातवें महीने में तुम करते आ रहे हो, क्या वह उपवास, सच ही, मेरे लिये थानहीं! (जकर्याह ७:१-५)
धार्मिक उपवास से आज्ञाकारिता बेहतर है। यह उपवास को नकारने के लिए नहीं है। ऐसा कहते है कि, कोई उपवास करता है तो और फिर भी प्रभु और उनके वचन के विरुद्ध विद्रोह में जी सकता है।
यहोवा का यह वचन जकर्याह के पास उन ७ कामों के विषय में पहुंचा जो उन्हें करने थे: (जकर्याह ७:८-१०)
१. खराई से न्याय चुकाना,
२. एक दूसरे के साथ कृपा और दया से काम करना,
३. न तो विधवा पर अन्धेर करना
४. न अनाथों पर अन्धेर करना
५. न परदेशी पर अन्धेर करना
६. न दीन जन पर अन्धेर करना
७. न अपने अपने मन में एक दूसरे की हानि की कल्पना करना
उन्होंने अपने ह्रदय को पत्थर के समान कठोर बना दिया, इसलिए वे उन निर्देशों या संदेशों को नहीं सुन सके जो स्वर्ग की सेनाओं के प्रभु ने उन्हें अपनी आत्मा के द्वारा पहले के भविष्यवक्ताओं के माध्यम से भेजे थे। इसलिए स्वर्ग की सेनाओं का यहोवा उन पर इतना क्रोधित हुआ। (जकर्याह ७:१२ एनएलटी)
अपने हृदय को कठोर करने से आप यहोवा की निर्देश को नहीं सुन पाएंगे। यदि आप उनकी वाणी सुनते हो तो अपने हृदय को कठोर न करो जैसा विद्रोह के दिनों में होता था।
अत: सर्वशक्तिमान यहावा ने कहा, “मैं ने उन्हें पुकारा और उन्होंने उत्तर नहीं दिया।
इसलिये अब यदि वे मुझे पुकारेंगे, तो मैं उत्तर नहीं दूँगा।. (जकर्याह ७:१३)
प्रार्थना में सबसे बड़ी रूकावट परमेश्वर के वचन को न सुनना और उसका पालन न करना है। यदि कोई व्यवस्था को सुनने से अपना कान फेर ले, तो उसकी प्रार्थना घृणित ठहरती है। (नीतिवचन २८:९)
4 मैंने सर्वशक्तिमान यहोवा का यह सन्देश पाया है: 5 “याजकों और इस देश के अन्य लोगों से यह कहो: जो उपवास और शोक पिछले सत्तर वर्ष से वर्ष के पाँचवें और सातवें महीने में तुम करते आ रहे हो, क्या वह उपवास, सच ही, मेरे लिये थानहीं! (जकर्याह ७:१-५)
धार्मिक उपवास से आज्ञाकारिता बेहतर है। यह उपवास को नकारने के लिए नहीं है। ऐसा कहते है कि, कोई उपवास करता है तो और फिर भी प्रभु और उनके वचन के विरुद्ध विद्रोह में जी सकता है।
यहोवा का यह वचन जकर्याह के पास उन ७ कामों के विषय में पहुंचा जो उन्हें करने थे: (जकर्याह ७:८-१०)
१. खराई से न्याय चुकाना,
२. एक दूसरे के साथ कृपा और दया से काम करना,
३. न तो विधवा पर अन्धेर करना
४. न अनाथों पर अन्धेर करना
५. न परदेशी पर अन्धेर करना
६. न दीन जन पर अन्धेर करना
७. न अपने अपने मन में एक दूसरे की हानि की कल्पना करना
उन्होंने अपने ह्रदय को पत्थर के समान कठोर बना दिया, इसलिए वे उन निर्देशों या संदेशों को नहीं सुन सके जो स्वर्ग की सेनाओं के प्रभु ने उन्हें अपनी आत्मा के द्वारा पहले के भविष्यवक्ताओं के माध्यम से भेजे थे। इसलिए स्वर्ग की सेनाओं का यहोवा उन पर इतना क्रोधित हुआ। (जकर्याह ७:१२ एनएलटी)
अपने हृदय को कठोर करने से आप यहोवा की निर्देश को नहीं सुन पाएंगे। यदि आप उनकी वाणी सुनते हो तो अपने हृदय को कठोर न करो जैसा विद्रोह के दिनों में होता था।
अत: सर्वशक्तिमान यहावा ने कहा, “मैं ने उन्हें पुकारा और उन्होंने उत्तर नहीं दिया।
इसलिये अब यदि वे मुझे पुकारेंगे, तो मैं उत्तर नहीं दूँगा।. (जकर्याह ७:१३)
प्रार्थना में सबसे बड़ी रूकावट परमेश्वर के वचन को न सुनना और उसका पालन न करना है। यदि कोई व्यवस्था को सुनने से अपना कान फेर ले, तो उसकी प्रार्थना घृणित ठहरती है। (नीतिवचन २८:९)
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