मसीही होने के नाते हमें दूसरों की सेवा करने और प्रेम करने के लिए बुलाया गए है, ठीक वैसे ही जैसे मसीह ने हमसे प्रेम किया और हमारे लिए खुद को दे दिया। हालाँकि, हमारी सेवा के बीच में, हम अपने लिए मान्यता और पदोन्नति पाने के चक्कर में पड़ सकते हैं। विशेष रूप से ऐसी दुनिया में जहां सफलता और मान्यता को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, उपाधि या पहचान और प्रशंसाओं की इच्छा रखना आकर्षक हो सकता है। लेकिन जैसे भजन संहिता ११५:१ हमें याद दिलाता है:
हे यहोवा, हमारी नहीं, हमारी नहीं, वरन अपने ही नाम की महिमा, अपनी करूणा और सच्चाई के निमित्त कर। (भजन संहिता ११५:१)
दो बार इसका उल्लेख किया गया है, "हमारी नहीं"। दो बार की उल्लेख एक शक्तिशाली स्मरण के रूप में कार्य करता है कि महिमा को हमारे लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए, बल्कि यह प्रभु का है।
पासबान, अगुवा और प्रभु की सेवा करने वाले, कृपया मुझे आपसे बात करने की अनुमति दें। सेवकाई में, कई बार, हम खुद को अप्रसन्न या दूसरों के द्वारा ध्यान न दिए जाने का अनुभव करते हैं। हमें ऐसा लग सकता है कि हमारे प्रयास पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है और पहचान हासिल करने के लिए खुद को बढ़ावा देने के लिए लुभा सकते हैं। लेकिन हमें सावधान रहना चाहिए कि मनुष्यों की नजरों के लिए कुछ न करें। हमें याद रखना चाहिए कि हमारा अंतिम उद्देश्य परमेश्वर की सेवा करना और उनकी महिमा करना है, न कि खुद की।
मत्ती ५:१६ में प्रभु यीशु भी परमेश्वर को महिमा देने के महत्व पर जोर देता हैं। "उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें॥" यहां, यीशु हमें बता रहे हैं कि जब हम अच्छे कार्य करते हैं, तो हमें उन्हें अपनी पहचान के लिए नहीं बल्कि परमेश्वर की महिमा के लिए करना चाहिए। हमें अपना जीवन इस तरह से जीना चाहिए कि दूसरे हमारे अच्छे कार्यों को देखें और परमेश्वर की महिमा करें।
सावधान रहें कि आप अपने कार्य लोगों को दिखाने के लिए उनके सामने न करें। नहीं तो स्वर्ग में अपने पिता से आपको कोई प्रतिफल नहीं मिलेगा। (मत्ती ६:१)
यीशु ने अपने चेलों को चेतावनी दी कि वे दूसरों के सामने अपनी धार्मिकता का अभ्यास करने से सावधान रहें ताकि वे उन्हें दिखला सकें। उन्होंने उन्हें याद दिलाया कि स्वर्ग में उनका पिता गुप्त रूप सए देखता है कि क्या किया जाता है और वह उन्हें उसी के अनुसार प्रतिफल देगा। (मत्ती ६:४)। हमें याद रखना चाहिए कि हमारा सच्चा प्रतिफल परमेश्वर से मिलता है, दूसरों की मान्यता से नहीं।
अपने लिए पदवि और पहचान की खोज करने के बजाय, हमें नम्र हृदय से दूसरों की सेवा करने पर ध्यान देना चाहिए, जैसा कि मसीह ने किया। हमें यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए, जिसने यीशु के बारे में कहा, "अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूं॥(यूहन्ना ३:३०)। हमें अपने सभी कार्यों में उन्हें महिमा और सम्मान देना सीखना चाहिए, भले ही इसका अर्थ बिना उपाधि या मान्यता के सेवा करना हो।
आइए हम सेवकाई में अपने उद्देश्यों के प्रति सचेत रहें। याद रखें कि यह खुद को बढ़ावा देने के बारे में नहीं है बल्कि उन्हें और उनके राज्य को बढ़ावा देने के बारे में है।
प्रार्थना
पिता, जैसे कि मैं आपकी सेवा करता हूं, तो मैं मांगता हूं कि आप मेरे हृदय को जांचे और किसी भी स्वार्थी मंशा को प्रकट करें जो मेरे भीतर छिपी हो सकती है। मुझे याद रखने में मदद कर कि यह खुद को बढ़ावा देने के बारे में नहीं बल्कि आपकी और आपके राज्य को बढ़ावा देने के बारे में है। यीशु के नाम में। आमेन!
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