उस समय दृष्टा हनानी यहूदा के राजा आसा के पास आया। हनानी ने उससे कहा, “आसा, तुम सहायता के लिये अराम के राजा पर आश्रित हुए, अपने यहोवा परमेश्वर पर नहीं। तुम्हें यहोवा पर आश्रित रहना चाहिये था। तुम याहोवा पर सहायता के लिये आश्रित नहीं रहे अतः अराम के राजा की सेना तुमसे भाग निकली। (2 इतिहास 16:7)
समझौता के कारण हम अपने असली विरोधियों को नहीं देख पाते हैं।
आसा हनानी पर उस बात से क्रोधित हुआ जो उसने कहा। आसा इतना क्रोध से पागल हो उठा कि उसने हनानी को बन्दीगृह में डाल दिया। (2 इतिहास 16:10)
यहोवा का वचन बोलने से उसकी कीमत चुकानी पड़ती है। दशीं , हनानी को कैद कर लिया गया था। बहुत बार, संदेशवाहक (सन्देश देनेवाले) को संदेश के लिए दंडित किया जाता है।
आसा का पैर उसके राज्यकाल के उनतालीसवें वर्ष[a] में रोगग्रस्त हो गया। उसका रोग बहुत बुरा था किन्तु उसने यहोवा से सहायाता नहीं चाही। आसा ने वैद्यों से सहायता चाही। (2 इतिहास 16:12)
आसा का मन यहोवा की ओर कठोर हो गया था। वह एक ऐसे व्यक्ति का एक सुन्दर उदाहरण है जिसने सही शुरुआत की लेकिन सही अंत नहीं किया। प्रेरित पौलुस हमें अपनी मसीही यात्रा की दौड़ को अच्छी तरह से दौड़ने की आज्ञा देता है (१ कुरिन्थियों ९:२४-२७)। हम स्वाभाविक रूप से उम्र और समय के साथ बेहतर नहीं बनते हैं; बल्कि, हम तभी बेहतर बनते हैं जब हम जीवन में आगे बढ़ते हुए विश्वास में परमेश्वर का पीछा करना जारी रखते हैं।
समझौता के कारण हम अपने असली विरोधियों को नहीं देख पाते हैं।
आसा हनानी पर उस बात से क्रोधित हुआ जो उसने कहा। आसा इतना क्रोध से पागल हो उठा कि उसने हनानी को बन्दीगृह में डाल दिया। (2 इतिहास 16:10)
यहोवा का वचन बोलने से उसकी कीमत चुकानी पड़ती है। दशीं , हनानी को कैद कर लिया गया था। बहुत बार, संदेशवाहक (सन्देश देनेवाले) को संदेश के लिए दंडित किया जाता है।
आसा का पैर उसके राज्यकाल के उनतालीसवें वर्ष[a] में रोगग्रस्त हो गया। उसका रोग बहुत बुरा था किन्तु उसने यहोवा से सहायाता नहीं चाही। आसा ने वैद्यों से सहायता चाही। (2 इतिहास 16:12)
आसा का मन यहोवा की ओर कठोर हो गया था। वह एक ऐसे व्यक्ति का एक सुन्दर उदाहरण है जिसने सही शुरुआत की लेकिन सही अंत नहीं किया। प्रेरित पौलुस हमें अपनी मसीही यात्रा की दौड़ को अच्छी तरह से दौड़ने की आज्ञा देता है (१ कुरिन्थियों ९:२४-२७)। हम स्वाभाविक रूप से उम्र और समय के साथ बेहतर नहीं बनते हैं; बल्कि, हम तभी बेहतर बनते हैं जब हम जीवन में आगे बढ़ते हुए विश्वास में परमेश्वर का पीछा करना जारी रखते हैं।
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