यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा॥ (भजन संहिता ३७:४)
जब आप अपने आप को यहोवा में सुख का मूल करते हैं। उनकी उपस्थिति एक प्रकार का दर्दनाक कर्तव्य नहीं बनती है जिसे आपको करना चाहिए। यह एक खुशी (सुख) बन जाता है।
इसका मतलब यह नहीं है कि परमेश्वर हमारे लिए वह सब कुछ करेगा जो हम चाहते हैं या सोच सकते हैं। अपने आप के शारीरिक की इच्छाओं को अक्सर तरोड मरोड़ और विकृत किया जाता है। यदि परमेश्वर इन इच्छाओं को पूरा करते हैं, तो अंतिम परिणाम हमें अच्छे से अधिक नुकसान पहुंचाएगा।
अपने आप को प्रभु में पसुख का मूल जानने का अर्थ है कि प्रभु के साथ हमारा व्यक्तिगत संबंध हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज बन जाता है। यह अन्य सभी रिश्तों पर और संतुष्टि के अन्य सभी रूपों पर प्रधानता बन जाता है। यह वह स्थान है जहाँ हमारी हर इच्छाएँ पवित्र होती हैं। अब आप केवल उसकी इच्छा के अनुरूप होने की इच्छा करने लगते हैं। तब वह आपको उन इच्छाओं को पूरा करता है।
धर्मी का थोड़ा से माल दुष्टों के बहुत से धन से उत्तम है। (भजन संहिता ३७:१६)
भगवान के साथ थोड़ा काफी है। प्रभु यीशु के पास केवल ५ रोटियाँ और दो मछलियाँ थीं और यह काफी था क्योंकि प्रभु का आशीष उस पर था।
दुष्ट ऋण लेता है, और भरता नहीं। (भजन संहिता ३७:२१)
दुष्टता के लक्षणों में से एक है उधार लेना और न चुकाना
क्या होगा अगर सभी ने समय पर सभी को भुगतान किया तो।
मुझे लगता है कि राष्ट्रों के आर्थिक निर्माण में बदलाव होगा।
उसके परमेश्वर की व्यवस्था उसके हृदय में बनी रहती है,
उसके पैर नहीं फिसलते॥ (भजन संहिता ३७:३१)
पीछे हटने का इलाज परमेश्वर की व्यवस्था को हमारे हृदय में रखना है।
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Chapters
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- अध्याय १३८
- अध्याय १३९
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