इसलिये यदि तुम इन सब आज्ञाओं के मानने में जो मैं तुम्हें सुनाता हूं पूरी चौकसी करके अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो, और उसके सब मार्गों पर चलो, और उस से लिपटे रहो। (व्यवस्थाविवरण ११:२२)
अक्सर हम सोचते हैं कि आज्ञाकारिता का मतलब है कैद (बंदी) या इनकार? स्पष्ट रूप से व्यवस्थाविवरण ११ बताता है कि कैसे परमेश्वर के आज्ञाओं को रखने से हमारे जीवन में आशीष आता है। अध्याय ११ के माध्यम से एक तेजी से नज़र डाले परमेश्वर के आज्ञाओं / व्यवस्थाओं को एक आशीष का पीछा करने के लिए ३ संदर्भ पाते है:
सभी आज्ञाओं का पालन कर ... ताकि आप सामर्थ हो कर और देश में बहुत दिन तक रहने पाए ... (प ८-९)
विश्वासपूर्वक आज्ञाओं का पालन कर… फिर मैं बारिश को बरसाऊंगा… (प १३-१४)
चौकसी कर ... तब यहोवा निकाल डालेगा ... (प २२)
आज्ञाकारिता की कुंजी? "उनको तेजी से पकड़ो" (प २३)
आज्ञाकारिता में चलना जरुरी है…
१) वचन में समय
२) परमेश्वर के साथ समय
सुनो, मैं आज के दिन तुम्हारे आगे आशीष और शाप दोनों रख देता हूं। अर्थात यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा की इन आज्ञाओं को जो मैं आज तुम्हे सुनाता हूं मानो, तो तुम पर आशीष होगी, और यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को नहीं मानोगे। (व्यवस्थाविवरण ११:२६-२८)
आशीष या शाप। मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा और पसंद की शक्ति को पूरा करना। परमेश्वर आज्ञा देता है, लेकिन मनुष्य यह चुनने के लिए स्वतंत्र है कि वह आज्ञा का पालन या उनकी आज्ञा का उल्लंघन करेगा।
हमारे पास आज भी वही मौलिक चुनाव है। हम अपने लिए जी सकते हैं या प्रभु के लिए जी सकते हैं। अपना खुद का मार्ग चुनने के लिए एक मृत-अंत से पार वाली सड़क पर यात्रा करना है, लेकिन परमेश्वर का मार्ग चुनना अनन्त जीवन प्राप्त करना है (यूहन्ना ५:२४)।
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