क्या प्रार्थना में हमारी आँखें बंद करना जरुरी है?
दो अवसरों पर, जब यीशु ने पिता से प्रार्थना की, तो उसने स्वर्ग की ओर अपनी आँखें उठाईं (यूहन्ना ११:४१; १७:१)। दूसरी ओर, जब चुंगी लेने वाले ने प्रार्थना की, तो वह "स्वर्ग की ओर आंखे उठाना भी न चाहा" (लूका १८:१३)।
बाइबल यह स्पस्ट नहीं करती है कि हमारी आँखें बंद करना हैं या खुली होना हैं। कई लोग अपने आसपास की चीजों से विचलित होने से बचने के लिए अपनी आँखें बंद कर लेते हैं।
और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जाने। (यूहन्ना १७:३)
अनन्त जीवन 'परमेश्वर के बारे में जानना' नहीं है, लेकिन व्यक्तिगत अंतरंग रिश्ते के माध्यम से पिता और उनके पुत्र को जानना है।
जो काम तू ने मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैं ने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है। (यूहन्ना १७:४)
याद रखें, हर बार जब आप परमेश्वर का दिया हुआ कार्य पूरा करते हैं तो आप इस पृथ्वी पर परमेश्वर की महिमा कर रहे होते हैं।
और अब, हे पिता, तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत के होने से पहिले, मेरी तेरे साथ थी। (यूहन्ना १७:५)
इस वचाब से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि प्रभु यीशु मसीह परमेश्वर है।
क्या ऐसा हो सकता है कि यहूदा नर्क में है?
जब मैं उन के साथ था, तो मैं ने तेरे उस नाम से, जो तू ने मुझे दिया है, उन की रक्षा की, मैं ने उन की चौकसी की और विनाश के पुत्र को छोड़ उन में से काई नाश न हुआ, इसलिये कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो। (यूहन्ना १७:१२)
ऊपर का वचन इस सत्य को विश्वास देता है। इसके अलावा, यहूदा इस्करियोती, जिसने यीशु को धोखा देने के बाद पश्चाताप करने के बजाय आत्महत्या कर ली।
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