कोई समझदार नहीं,
कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं। (रोमियो ३:११)
एक समझदार व्यक्ति प्रभु की खोज करेगा।
प्रभु को खोज करने वाला व्यक्ति समझदार होगा।
सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए। (रोमियो ३:१२)
क्योंकि जो व्यक्ति प्रभु की खोज नहीं करता है, ऐसा व्यक्ति निकम्मा (लाभहीन) हो जाता है।
कोई भलाई करने वाला नहीं, एक भी नहीं। (रोमियो ३:१२)
भलाई करने से प्रभु का जानना जाता है न कि दूसरे रास्ते से।
भलाई करने से तुम प्रभु को नहीं जान पाते। प्रभु को जानना आपको भलाई बनाता है।
"उन का गला खुली हुई कब्र है:
उन्होंने अपनी जीभों से छल किया है";
"उन के होठों में सापों का विष है।"
"और उन का मुंह श्राप और कड़वाहट से भरा है।" (रोमियो ३:१३-१४)
उपरोक्त वचन मानव भाषण - गला, जीभ, होंठ और मुंह पर जोर देते हैं। शब्दों और चरित्र के बीच संबंध मत्ती १२:३४ में दिखाया गया है: "जो मन में भरा है, वही मुंह पर आता है।" पापी स्वभाव से आत्मिक रूप से मरा हुआ है, इसलिए केवल मौत उसके मुंह से निकलती है। (इफिसियों २:१-३)
हालाँकि, इस बात की आशा है कि निंदा करने वाला मुंह एक परिवर्तित मुंह बन सकता है और यह स्वीकार कर सकता है कि "यीशु मसीह प्रभु है" (रोमियों १०:९-१०)। "क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा॥" (मत्ती १२:३७)
"उन के पांव लोहू बहाने को फुर्तीले हैं।
उन के मार्गों में नाश और क्लेश हैं।" (रोमियो ३:१५-१६)
उपरोक्त पचित्र शास्त्र में, प्रेरित पौलुस ने पापी के पांव का स्पस्ट वर्णन किया है। जिस प्रकार पापी के वचन कपटपूर्ण होता हैं, उसी प्रकार उसके मार्ग भी विनाशकारी (हानिकारक) होता हैं।
मसीहीयों के पांव शांति (मेक) के सुसमाचार की तैयारी के साथ है (इफिसियों ६:१५), लेकिन खोया हुआ पापी जहाँ भी जाता है मृत्यु, नाश और दुख (क्लेश) लाता है। ये शोकपूर्ण घटना तुरंत नहीं हो सकती हैं, लेकिन वे अनिवार्य रूप से आता है। खोया हुआ पापी उस चौड़ा मार्ग पर है जो नाश की ओर जाता है (मत्ती ७:१३-१४); उसे पश्चाताप करने, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने और जीवन की ओर ले जाने वाली सकरा मार्ग पर जाने की जरुरत है।
उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना। (रोमियो ३:१७)
उपरोक्त वचन पापी के मन से संबंधित है: वह परमेश्वर की शांति के मार्ग को नहीं जानता है। यही कारण है कि प्रभु यीशु यरूशलेम (लूका १९:४१-४४) के लिए रोया था। पापी को परमेश्वर की सच्चाई जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है (रोमियों १:२१, २५, २८); वह शैतान के झूठ पर विश्वास करना पसंद करता है। परमेश्वर की शांति का मार्ग केवल प्रभु यीशु मसीह के माध्यम से है: "सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें" (रोमियो ५:१)।
उन की आंखों के साम्हने परमेश्वर का भय नहीं। (रोमियो ३:१८)।
रोमियों ३:१८ में भजन संहिता ३६:१ का उल्लेख किया गया है, पापी का घमंडी अभिमान निर्धारित है: "उनकी आंखों के सामने परमेश्वर का भय नहीं है।" पूरी तस्वीर पाने के लिए, पूरे भजन संहिता को अवश्य पढ़ना चाहिए। रोमियों ३:१७ में उल्लिखित अज्ञान वचन 18 के घमंड के कारण है, क्योंकि, "परमेश्वर का भय" मानना बुद्धि का मूल है (नीतिवचन १:७)।
परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं। (रोमियो ३:२४)
न्यायोचित (समर्थन) और पवित्रता के बीच अंतर न्यायोचित एक कार्य है, प्रक्रिया नहीं है।
न्यायोचित की कोई डिग्री नहीं है; हर विश्वासि परमेश्वर के सामने खडा रहने का समान अधिकार है। इसके अलावा, न्यायोचित परमेश्वर करता है, मनुष्य नहीं। कोई भी पापी खुद को परमेश्वर के सामने न्यायी नहीं ठहरा सकता। सबसे महत्वपूर्ण, न्यायोचित का मतलब यह नहीं है कि परमेश्वर हमें धर्मी बनाता है, लेकिन वह हमें धर्मी घोषित करता है।
न्यायोचित एक कानूनी मामला है। परमेश्वर मसीह की धार्मिकता को हमारे पापों के स्थान पर हमारे लेख के लिए रखा है। और इस लेख पत्रिका को कोई नहीं बदल सकता है।
न्यायोचित और पवित्रता में व्याकुल न होये। पवित्रता वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा परमेश्वर विश्वासि को अधिक से अधिक मसीह की तरह बनाता है। पवित्रता दिन प्रति दिन बदल सकता है। न्यायोचित कभी नहीं बदलता है। जब पापी मसीह पर भरोसा करता है, तो परमेश्वर उसे धर्मी घोषित करता है, और वह घोषणा कभी भी निरस्त नहीं होगी। परमेश्वर हमें देखता है और हमारे साथ ऐसा व्यवहार करता है जैसे कि हमने कभी भी पाप नहीं किया था!
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