उस ने उन को उत्तर दिया, और तुम अपने पूर्वजों (बड़ों) द्वारा तुम्हें सौंपे गए नियमों के कारण क्यों परमेश्वर की आज्ञा टालते हो? (मत्ती १५:३)
मेरा मानना है कि जब तक हमारे पूर्वजों द्वारा दिए गए नियम (परंपराएं) परमेश्वर की आज्ञाओं को टालते नहीं, तब तक ऐसी परंपराओं का पालन करना ठीक है। ये परम्पराएँ हैं जो प्रेरित पौलुस ने निम्नलिखित वचनो में कही हैं। ये वचन में यीशु के सिखाए गए बातों का विरोध नहीं करती हैं।
हे भाइयों, मैं तुम्हें सराहता हूं, कि सब बातों में तुम मुझे स्मरण करते हो: और जो व्यवहार मैं ने तुम्हें सौंप दिए हैं, उन्हें धारण करते हो। (१ कुरिन्थियों ११:२)
इसलिये, हे भाइयों, स्थिर रहो; और जो जो बातें तुम ने क्या वचन, क्या पत्री के द्वारा हम से सीखी है, उन्हें थामे रहो॥ (२ थिस्सलुनीकियों २:१५)
समस्या तब होती है जब लोग अपने पूर्वजों (बड़ों) द्वारा दिए गए नियमों की खातिर परमेश्वर की आज्ञाओं को टालते हैं।
क्योंकि परमेश्वर ने आज्ञा दी, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना और, वह जो शाप देता है या बुरा भला कहता है या बुराई कहता है या अपशब्द बोलता है या अपने पिता या माता के साथ अनुचित व्यवहार करता है, उसका अंत निश्चित रूप से मृत्यु के द्वारा होगा। (मत्ती १५:४)
१. वह जो शाप देता है - आशीष देता है
२. या बुरा भला कहता है
३.या बुराई कहता है
४. या अपशब्द बोलता है
५. या अपने पिता या माता के साथ अनुचित व्यवहार करता है
जब कोई व्यक्ति अपने पिता और माता का आदर करता है, तो जीवन उसी में काम करता है। हालाँकि, जब कोई व्यक्ति अपने पिता और माता का बेइज्जती करता है, तो मृत्यु उसी में काम करती है। हमें अपने पिता और माता को आदर देने के तरीके खोजने चाहिए।
पर तुम कहते हो, कि यदि कोई अपने पिता या माता से कहे, कि जो कुछ तुझे मुझ [वह है, धन और मेरे पास जो कुछ भी है वह आपकी मदद के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है] से लाभ पहुंच सकता था, वह परमेश्वर को भेंट चढ़ाई जा चुकी, तब वह छूट जाता है और अपने पिता या अपनी माता के आदर और मदद के लिए आभार नहीं होता है। (मत्ती १५:५)
यहां तक कि अगर आप प्रभु की सेवा कर रहे हैं, तो भी आपको देखभाल करने या अपने पिता और माता की मदद करने की छूट नहीं है।
हम बिना किसी प्रभाव के परमेश्वर का वचन कैसे करते हैं?
सो तुम ने अपनी रीतों (अपने पूर्वजों द्वारा दिए गए नियम) के कारण परमेश्वर का वचन टाल दिया [बल और अधिकार से वंचित करना और इसे बिना किसी प्रभाव के बनाना]। (मत्ती १५:६)
हम परमेश्वर के वचन के बजाय अपनी परंपराओं को अधिक महत्व देते हैं।
पर जो कुछ मुंह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। क्योंकि कुचिन्ता, हत्या, पर स्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलतीं है। यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता॥ (मत्ती १५:१८-२०)
मुंह के माध्यम से अशुद्धता। अगर मुंह से निकली कोई बात किसी व्यक्ति को अशुद्ध करने की क्षमता रखती है तो हमारे मुंह से आने वाली बात (परमेश्वर का वचन) भी व्यक्ति को पवित्र करने की क्षमता रखती है।
जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनों होते है (नीतिवचन १८:२५)
आपके शब्दों के द्वारा आपका न्यायी होगा और आपके शब्दों के द्वारा आपकी निंदा की जाएगी।
जो मुंह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध और अनादर नहीं करता, पर जो मुंह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध और अनादर करता है। (मत्ती १५:११)
मुंह से क्या निकल सकता है
१. किसी व्यक्ति को अशुद्ध करना
२. व्यक्ति को आदर करना
३. व्यक्ति को अनादर करना
उन को जाने दो; वे अन्धे मार्ग दिखाने वाले हैं: और अन्धा यदि अन्धे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड़हे में गिर पड़ेंगे। (मत्ती १५:१४)
एक अगुवे को आत्मिक रूप से अंधा नहीं होना चाहिए। इसका मतलब यह भी है कि लोगों को सही तरीके से अगुवाई करने के लिए एक अगुवे के पास अपनी आत्मिक आँखें होनी चाहिए।
इस पर यीशु ने उस को उत्तर देकर कहा, कि हे स्त्री, तेरा विश्वास बड़ा है: जैसा तू चाहती है, तेरे लिये वैसा ही हो; और उस की बेटी उसी घड़ी से चंगी हो गई॥ (मत्ती १५:२८)
उसने जो कुछ कहा वह उसकी बहुत आवश्यक छुटकारा लाया। जो कुछ उसने कहा वह उसके विश्वास का प्रदर्शन किया। दोनों ही मामलों में इस्राएल के बहार बड़ा विश्वास पाया गया।
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