स्वर्ग का राज्य किसी गृहस्थ के समान है, जो सबेरे निकला, कि अपने दाख की बारी में मजदूरों को लगाए। (मत्ती २०:१)
फसल कटनी के लिए तैयार थी और इसलिए गृहस्थ (भूस्वामी) को मजदूरों की जरूरत थी। ध्यान दें, वह सुबह जल्दी जाता है। यदि आप फसल लाना चाहते हैं, तो वहाँ हमेशा एक कीमत चुकानी होगी।
भूस्वामी मजदूरों को काम पर रखने के लिए ५ बार निकला:
अपने दाख की बारी में मजदूरों को रखने के लिए सुबह जल्दी निकला
वह तीसरे घंटे (सुबह ९ बजे) को निकला था
फिर से वह छठे घंटे (12 बजे) को निकला था।
और नौवें घंटे (दोपहर ३ बजे)
और ग्यारहवें घंटे (शाम ५ बजे) को निकला था
सांझ को दाख बारी के स्वामी ने अपने भण्डारी से कहा, मजदूरों को बुलाकर पिछलों से लेकर पहिलों तक उन्हें मजदूरी दे दे। सो जब वे आए, जो घंटा भर दिन रहे लगाए गए थे, तो उन्हें एक एक दीनार मिला। जो पहिले आए, उन्होंने यह समझा, कि हमें अधिक मिलेगा; परन्तु उन्हें भी एक ही एक दीनार मिला।
जब मिला, तो वह गृहस्थ पर कुडकुड़ा के कहने लगे। कि इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया, और तू ने उन्हें हमारे बराबर कर दिया, जिन्हों ने दिन भर का भार उठाया और घाम सहा? उस ने उन में से एक को उत्तर दिया, कि हे मित्र, मैं तुझ से कुछ अन्याय नहीं करता; क्या तू ने मुझ से एक दीनार न ठहराया? (मत्ती २०:८-१३)
जिस तरह से भूस्वामी ने अपने दाख की बारी में काम करने के लिए काम पर रखा पुरुषों को कीमत चूककया, उस पर हमारी प्रतिक्रिया होगी कि यह हमारे मन की स्थिति पर निर्भर करता है।
हमारा प्रतिक्रया होगा, "हा, कितना उदारता का स्वामी है!" या हम कह सकते हैं, "क्या यह बहुत अनुचित नहीं है?"
वे अपने नुकसान के रूप में दूसरे के लाभ की व्याख्या कर रहे थे। इससे पता चलता है कि उनके दिल में क्या था - ईर्ष्या (जलन)।
इस दृष्टांत का संदर्भ हमें सिखाता है कि यह अनुग्रह पर एक सीख है। हमारे प्रदर्शन के बावजूद, हम सभी को परमेश्वर का अनुग्रह की जरुरत है क्योंकि हम सभी परमेश्वर की महिमा से रहित है (रोमियो ३:२३)।
प्रभु यीशु इस बात पर जोर दे रहे थे कि स्वर्ग का राज्य के लाभ उन सभी के लिए समान हैं जो अपने राजा के अधीन हो गए हैं, भले ही उन्होंने कुछ किया हो।
यीशु ने उत्तर दिया, तुम नहीं जानते कि क्या मांगते हो? (मत्ती २०:२२)
इससे यह स्पष्ट है कि कभी-कभी हम नहीं जानते कि हम क्या मांग रहे हैं। हमारा मांगना परमेश्वर के वचन द्वारा नियमित किया जाना चाहिए।
"जो कटोरा मैं पीने पर हूं, क्या तुम पी सकते हो? और जिस बपतिस्मे से मैं बपतिस्मा लिया हूँ, उससे बपतिस्मा लोगे?" उन्होंने उस से कहा, पी सकते हैं। (मत्ती २०:२२)
इसी तरह, यक्कुब और यूहन्ना मृत्यु के मुद्दे पर भी अपने कष्टों को साझा किया, लेकिन एक निंदात्मक अर्थ में नहीं। याकूब शहीद होने वाला पहला प्रेरित था (प्रेरितों के काम १२:२), और यूहन्ना ने कई सालों तक सताव और निर्वासन किया (प्रकाशित वाक्य १:९)।
परन्तु तुम में ऐसा न होगा; परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने। (मत्ती २०:२६)
महानता का मार्ग विश्वासयोग्य सेवा है। मैंने अक्सर उन पुरुषों और महिलाओं के बारे में सुना है जो एक कंपनी में आम कर्मचारियों के रूप में शुरू हुए थे, लेकिन अंत में उनकी ईमानदारी और प्रतिबद्धता के कारण शासकीय पदों पर पहुंचे। महानता की ऊंचाई के लिए अपने मार्ग की सेवा शुरू करें।
जब वे यरीहो से निकल रहे थे, तो एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। और देखो, दो अन्धे, जो सड़कर के किनारे बैठे थे, यह सुनकर कि यीशु जा रहा है, पुकारकर कहने लगे; कि हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर। (मत्ती २०: २९-३०)
दो अंधे व्यक्ति ने सुना कि यीशु वहा से गुजर रहे थे। जीवन भर के अंधेपन के बावजूद, उन्होंने सोचा होगा, हमें ऐसे ही नहीं रहना है। बेहतर भविष्य की एक आशा है। इसलिए वे रोने लगे, "हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर!"
लोगों ने उन्हें डांटा, कि चुप रहें, पर वे और भी चिल्लाकर बोले, हे प्रभु, दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर। (मत्ती २०:३१)
इन दो व्यक्तियों ने परमेश्वर से सबसे प्रभावी प्रार्थना की — उनकी दया की प्रार्थना।
तब यीशु ने ख़ड़े होकर, उन्हें बुलाया, और कहा; तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूं? (मत्ती २०:३२)
यह एक अच्छा अनुस्मारक है कि आपको हमेशा अपनी प्रार्थना और निवेदन में विशिष्ट होना चाहिए। बस प्रार्थना मत करो, "प्रभु मुझे आशीष कर।" विशिष्ट तरीके से करिये। यीशु ठीक से जानना चाहते थे कि ये लोग परमेश्वर के लिए क्या विश्वास कर रहे थे।
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