इसलिये वे तुम से जो कुछ कहें वह करना, और मानना; परन्तु उन के से काम मत करना; क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं। (मत्ती २३:५)
यीशु दिखावटी धर्मनिष्ठा या फुंदने पहनने के खिलाफ नहीं थे, बल्कि उनके उद्देश्यों के लिए फरीसियों को फटकार लगाई। वे परमेश्वर के वचन को लगातार उनके सामने रखने की कोशिश नहीं कर रहे थे, जैसा कि व्यवस्थाविवरण ६:८ में था। लेकिन वे चाहते थे कि हर कोई यह देखे कि वे कितने पवित्र थे। उद्देश्य, बिना क्रिया, आमतौर पर वे हैं जो लोगों को कपटी बनाते हैं।
और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। (मत्ती २३:९)
इसी तरह, यीशु ने हमें पृथ्वी पर किसी भी व्यक्ति को "पिता" न कहने के लिए कहा है (मत्ती २३:९)। यह एक शारीरिक, पिता-बच्चे के रिश्ते की बात नहीं है, क्योंकि प्रेरित पौलुस ने अक्सर लोगों को यह वचन लागू किया था (रोमियो ४:११)
प्रेरित पौलुस ने खुद को एक आत्मिक अर्थ में कुरिन्थियों के विश्वासियों के लिए पिता होने के रूप में संदर्भित किया (१ कुरिन्थियों ४:१५)।
यीशु ने मत्ती २३ में आठ निंदाओं का उच्चारण किया, जिनमें से हर एक की शुरुआत "तुझ पर हाय (हे कपटियों)" (मत्ती २३:१३-१६, २३, २५, २७ और २९)।
कपटियों जो उपदेश देते है उसका अभ्यास (अमल) नहीं करते है (मत्ती २३:३-४), वे हमेशा परमेश्वर की महिमा करने की कोशिश करने के बजाय खुद का महिमा चाहते हैं (मत्ती २३:५-७), उनकी खुद की प्राथमिकताएँ हहै जो गलत हैं (मत्ती २३:१६-२४), वे हृदय की आंतरिक स्थिति के बजाय बाहर की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं मत्ती २३:२५-२८), और वे हमेशा परमेश्वर के सच्चे आराधकों को सताते हैं (मत्ती २३:२९-३५)।
कपटी के दो मुख्य प्रकार हैं:
१. जो कोई उपदेश देता है उसका अभ्यास नहीं करता है (तीतुस १:१६)
२. गलत उद्देश्यों के साथ सही कार्य (मत्ती १५:८)।
यह दूसरा प्रकार का कपट था जिसे यीशु ने शास्त्री और फरीसियों को फटकार लगाया था। यह पहले प्रकार की तुलना में अधिक सूक्ष्म है और आज के धर्म में बहुत प्रचलित है।
और एक दिखावा के लिए लंबी प्रार्थना करते हो। इसलिए तुमको अधिक निंदा मिलेगी। (मत्ती २३:१४)
यीशु ने लंबे समय तक प्रार्थना की जिसमें कुछ सारी रात की प्रार्थना के समय भी शामिल थे। यीशु भी निराश था क्योंकि उनके चेलें एक घंटे तक उनके साथ प्रार्थना नहीं कर सकते थे। इसलिए, यीशु लंबी प्रार्थनाओं का खंडन नहीं कर रहा था, बल्कि यह तथ्य कि शास्त्री और फरीसी केवल दिखावा या दिखावे के लिए प्रार्थना कर रहे थे।
अगुवा न होने से बुरा क्या है?
अंधा अगुवा होना
हे अंधे अगुवों, तुम पर हाय (मत्ती २३:१६)
हे मूर्खों, और अन्धों, कौन बड़ा है, सोना या वह मन्दिर जिस से सोना पवित्र होता है? (मत्ती २३:१७) फरीसियों ने जो गलती की, वह आत्मिक वेदी की तुलना में भौतिक भेट पर अधिक जोर देने के लिए थी जिसने भेट को पवित्र किया।
हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय; तुम पोदीने और सौंफ और जीरे का दसवां अंश देते हो, परन्तु तुम ने व्यवस्था की गम्भीर बातों को अर्थात न्याय, और दया, और विश्वास को छोड़ दिया है; चाहिये था कि इन्हें भी करते रहते, और उन्हें भी न छोड़ते। (मत्ती २३:२३)
कुछ लोगो ने गलत तरीके से सिखाया है कि यीशु ने दशमांश को छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने विशेष रूप से इसे उनके नए नियम के शिक्षण का हिस्सा नहीं बनाया। लेकिन इस उदाहरण में, यीशु ने दशमांश का समर्थन किया और निहित किया कि वे ऐसा करने में सही थे। इसलिए, नई वाचा ने दशमांश को नहीं छोड़ दिया, लेकिन यह स्पष्ट किया कि दशमांश देने का उद्देश्य क्या होना चाहिए। अनुग्रह ने कभी नहीं कहा कि दशमांश मत दो।
अब्राम को व्यवस्था दिए जाने से पहले ४३० साल से अधिक दशमांश दिया था (उत्पत्ति १४:२०)। याकूब ने व्यवस्था के समय से लगभग ३०० साल पहले भी दशमांश दी थी (उत्पत्ति २८:२२)। इसलिए, दशमांश देना एक बाइबल सिद्धांत था जो मूसा के व्यवस्था के साथ शुरू या समाप्त नहीं हुआ था।
हे अन्धे अगुवों, तुम मच्छर को तो छान डालते हो, परन्तु ऊंट को निगल जाते हो। (मत्ती २३:२४)
अमुख्य पर प्रमुख का यह एक श्रेष्ट उदाहरण है। इसका मतलब है कि तुच्छ चीजों पर ध्यान केंद्रित करना और प्रमुख मुद्दों की अनदेखी करना।
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