तब उसने मुझ से कहा, "हे मनुष्य के सन्तान, जो तुझे मिला है उसे खा ले; अर्थात इस पुस्तक को खा, तब जा कर इस्राएल के घराने से बातें कर।" (यहेजकेल ३:१)
परमेश्वर ने यहेजकेल को चार आदेशात्मक को संबोधित किया।
१. वह उसे खाना है,
२. खा,
३. जा,
४. बातें कर
वह उसे इस पुस्तक को खाना है। इसका मतलब यह है कि परमेश्वर के वचन को आंतरिक रूप से, पचाया और पचना किया जाना चाहिए जो परमेश्वर के दूत के रूप में सेवा करता है। खुद यहेजकेल को संदेश बनना चाहिए।
पुस्तक खाने के लिए आज्ञा की एड़ी के अनुसार इस्राएल के घराने से बात करने की आज्ञा है। वचन के ग्रहण के तुरंत बाद इसकी घोषणा होनी चाहिए।
सो मैं ने मुंह खोला और उसने वह पुस्तक मुझे खिला दी।
यहेजकेल ने प्रभु की आज्ञा का पालन करने का प्रयास किया। उसने मुँह खोला। इस मुद्दे पर हम इस कार्य में परमेश्वर की अनुग्रह को देखते हैं "उन्होंने मुझे उस पुस्तक को खाने के लिए प्रेरित किया" जब हम सिर्फ उनके वचन का पालन करने का प्रयास करते हैं, तो उनकी अनुग्रह हमारे लिए उपलब्ध हो जाती है।
तब उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, यह पुस्तक जो मैं तुझे देता हूँ उसे पचा ले, और अपनी अन्तडिय़ां इस से भर ले। सो मैं ने उसे खा लिया; और मेरे मुंह में वह मधु के तुल्य मीठी लगी। (यहेजकेल ३:३)
किसी ने मुझसे एक सवाल पूछा: मुझे वचन के कितने अध्याय पढ़ने चाहिए? मुझे कितना वचन पढ़ना चाहिए? हम में से हर एक के पास अलग-अलग भूख हैं। तब तक खाएं जब तक आप न भर जाए। संतुष्ट होने तक खाएं। तब तक पढ़िए जब तक आपका पेट न भर जाए।
इससे पहले कि आप प्रभु के लोगों को बोलें, इससे पहले कि आप वचन का प्रचार करें; आपको इस वचन को खाना चाहिए। दूसरे शब्दों में अपने आप को परमेश्वर के वचन से भरें। मेरा विश्वास है कि यहोवा यहेजकेल से कह रहा था, अपने आप को खिलाओ, अपना पेट भरो, वचन को पचाओ या वचन को पचाना करो।
फिर उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने के पास जा कर उन को मेरे वचन सुना। क्योंकि तू किसी अनोखी बोली वा कठिन भाषा वाली जाति के पास नहीं भेजा जाता है, परन्तु इस्राएल ही के घराने के पास भेजा जाता है। अनोखी बोली वा कठिन भाषा वाली बहुत सी जातियों के पास जो तेरी बात समझ न सकें, तू नहीं भेजा जाता। नि:सन्देह यदि मैं तुझे ऐसों के पास भेजता तो वे तेरी सुनते। परन्तु इस्राएल के घराने वाले तेरी सुनने से इनकार करेंगे; वे मेरी भी सुनने से इनकार करते हैं; क्योंकि इस्राएल का सारा घराना ढीठ और कठोर मन का है। (यहेजकेल ३:४-७)
योना के विपरीत, यहेजकेल को ऐसे लोगों के पास नहीं भेजा जा रहा था जिनकी भाषा वह नहीं समझ सकता था।
कितनी बार जो लोग वास्तव में अध्ययन करने या सच्चाई जानने की इच्छा के बिना अपने स्वयं के विचारों से आत्मिक रूप से चिपके होने का दावा करते हैं। यह यीशु के समय में भी हुआ था।
अधिकांश बार अंदरूनी (परिवार) लोगों के बजाय बाहरी लोगों को उपदेश देना आसान होता है। अंदरूनी लोगो को लगता है कि वे सब कुछ जानते हैं जबकी वे नहीं जानते कि उन्हें क्या जानना है।
देख, मैं तेरे मुख को उनके मुख के साम्हने, और तेरे माथे को उनके माथे के साम्हने, ढीठ कर देता हूँ। ९ मैं तेरे माथे को हीरे के तुल्य कड़ा कर देता हूँ जो चकमक पत्थर से भी कड़ा होता है; सो तू उन से न डरना, और न उनके मुंह देख कर तेरा मन कच्चा हो; क्योंकि वे बलवई घराने के हैं। (यहेजकेल ३:८-९)
यहेजकेल को दैवीय सामर्थ का प्रावधान दिया गया है। वचन का प्रचार करने के लिए दैवीय सशक्तिकरण की जरुरत है। वचन प्रचार करने के लिए प्रमुख बाधाओं में से एक है कि आपको डर पर काबू पाना है।
फिर उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, जितने वचन मैं तुझ से कहूँ, वे सब हृदय में रख और कानों से सुन। (यहेजकेल ३:१०)
वचन के उपदेशक को अपने आत्मिक कान खोलके रखना चाहिए।
Chapters
- अध्याय १
- अध्याय २
- अध्याय ३
- अध्याय ४
- अध्याय ५
- अध्याय ६
- अध्याय ७
- अध्याय ८
- अध्याय ९
- अध्याय १०
- अध्याय ११
- अध्याय १२
- अध्याय १३
- अध्याय १४
- अध्याय १५
- अध्याय १६
- अध्याय १७
- अध्याय २१
- अध्याय २२
- अध्याय २६
- अध्याय २७
- अध्याय २९
- अध्याय ३०
- अध्याय ३१
- अध्याय ३२
- अध्याय ३३
- अध्याय ३४
- अध्याय ३५
- अध्याय ३६
- अध्याय ३७
- अध्याय ३८
- अध्याय ४७
- अध्याय ४८