तब उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, जो मनुष्य इस नगर में अनर्थ कल्पना और बुरी युक्ति करते हैं वे ये ही हैं। (यहेजकेल ११:२)
हमेशा ऐसे लोगों का एक समूह होता है जो एक देश में, एक राज्य में, एक शहर में बुरी सलाह देते हैं।
प्रार्थना
१. इस शहर में बुरी सलाह देने वाले हर एक समूह की मृत्यु हो जाए यीशु के नाम में।
२. इस शहर में और देश में परमेश्वर आत्मिक सलाह देने वाले समूह को उत्थान करें यीशु के नाम में।
तुम ने ऐसा ही कहा हे; जो कुछ तुम्हारे मन में आता है, उसे मैं जानता हूँ। (यहेजकेल ११:५)
परमेश्वर हर उस विचार को जानता है जो हमारे मन में आता है।
तब आत्मा ने मुझे उठा कर यहोवा के भवन के पूवीं फाटक के पास जिसका मुंह पूवीं दिशा की ओर है, पहुंचा दिया; और वहां मैं ने क्या देखा, कि फाटक ही में पच्चीस पुरुष हैं। और मैं ने उनके बीच अज्जूर के पुत्र याजन्याह को और बनायाह के पुत्र पलत्याह को देखा, जो प्रजा के प्रधान थे। (यहेजकेल ११:१)
पूर्वी मंदिर के फाटक पर, यहेजकेल ने पच्चीस लोगों को देखा।
क्या ये वही लोग हैं जिन्हें यहेजकेल ने ८:१६ में सूर्य की उपासना करते देखा था? शायद ऩही। पूर्व मण्डली का एक याजक समूह था, जबकि ये पच्चीस अगुवे थे। इसके अलावा, दो समूह के लोगो को अलग-अलग इलाकों में देखा जाता है।
परन्तु तू उन से कह, प्रभु यहोवा यों कहता है कि मैं ने तुम को दूर दूर की जातियों (इस्राएल) में बसाया और देश देश में तितर-बितर कर दिया तो है, तौभी जिन देशों में तुम आए हुए हो, उन में मैं स्वयं तुम्हारे लिये थोड़े दिन तक पवित्र स्थान ठहरूंगा। (यहेजकेल ११:१६)
फिल्म आयरन मैन - III का विषय "क्या आदमी सूट को बनाता है या सूट आदमी को बनाता है?"
यह परमेश्वर की उपस्थिति है जो पवित्र स्थान बनाती है, न कि वह पवित्र स्थान जो परमेश्वर की उपस्थिति को सुरक्षित करता है। परमेश्वर और उनके लोगों के बीच संबंध के लिए भौतिक मंदिर बिल्कुल आवश्यक नहीं था। हालाँकि वनवासियों ने मंदिर को खो दिया था, लेकिन उन्होंने परमेश्वर की उपस्थिति को नहीं खोया था।
Chapters
- अध्याय १
- अध्याय २
- अध्याय ३
- अध्याय ४
- अध्याय ५
- अध्याय ६
- अध्याय ७
- अध्याय ८
- अध्याय ९
- अध्याय १०
- अध्याय ११
- अध्याय १२
- अध्याय १३
- अध्याय १४
- अध्याय १५
- अध्याय १६
- अध्याय १७
- अध्याय २१
- अध्याय २२
- अध्याय २६
- अध्याय २७
- अध्याय २९
- अध्याय ३०
- अध्याय ३१
- अध्याय ३२
- अध्याय ३३
- अध्याय ३४
- अध्याय ३५
- अध्याय ३६
- अध्याय ३७
- अध्याय ३८
- अध्याय ४७
- अध्याय ४८